गीतिका/ग़ज़लपद्य साहित्य

ग़ज़ल

जगत में बारहा आता रहा हूँ
खुदा का मैं बहुत प्यारा रहा हूँ |
वफ़ा में प्यार मैं करता रहा हूँ
निभाया प्यार मैं सच्चा रहा हूँ |
मिले मुझसे यहाँ सब प्यार से यार
मुहब्बत गीत मैं गाता रहा हूँ |
खुदा की यह खुदाई है बहुत प्रिय
खुदाई देखने आता रहा हूँ |
नहीं है दोस्तों में फासला फिर
जगत में क्यों सदा तनहा रहा हूँ ?
हमेशा साथ हम मिलकर रहे पर
मुहब्बत में सदा प्याषा रहा हूँ |
सभी की जो जरूरत थी, मिटाया
लुटाने प्यार मैं दरिया रहा हूँ |
किया है अजनबी की भी भलाई
भलाई का सदा जरिया रहा हूँ |
बुढापा फ़क्त दुख का इक बहाना
दुखी की जिंदगी जीता रहा हूँ
किया है प्यार उसने प्राण भर कर
प्रिया का मैं सदा सजना रहा हूँ |
भुलाया दोष सबका, दोस्त ‘काली’
गिले सब भूलकर अपना रहा हूँ |
कालीपद ‘प्रसाद’

*कालीपद प्रसाद

जन्म ८ जुलाई १९४७ ,स्थान खुलना शिक्षा:– स्कूल :शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय ,धर्मजयगड ,जिला रायगढ़, (छ .गढ़) l कालेज :(स्नातक ) –क्षेत्रीय शिक्षा संस्थान,भोपाल ,( म,प्र.) एम .एस .सी (गणित )– जबलपुर विश्वविद्यालय,( म,प्र.) एम ए (अर्थ शास्त्र ) – गडवाल विश्वविद्यालय .श्रीनगर (उ.खण्ड) कार्यक्षेत्र - राष्ट्रीय भारतीय सैन्य कालेज ( आर .आई .एम ,सी ) देहरादून में अध्यापन | तत पश्चात केन्द्रीय विद्यालय संगठन में प्राचार्य के रूप में 18 वर्ष तक सेवारत रहा | प्राचार्य के रूप में सेवानिवृत्त हुआ | रचनात्मक कार्य : शैक्षणिक लेख केंद्रीय विद्यालय संगठन के पत्रिका में प्रकाशित हुए | २. “ Value Based Education” नाम से पुस्तक २००० में प्रकाशित हुई | कविता संग्रह का प्रथम संस्करण “काव्य सौरभ“ दिसम्बर २०१४ में प्रकाशित हुआ l "अँधेरे से उजाले की ओर " २०१६ प्रकाशित हुआ है | एक और कविता संग्रह ,एक उपन्यास प्रकाशन के लिए तैयार है !