ग़ज़ल
इस वक्त रचें आओ कोई मिल के कहानी।
आकाश में बादल हैं बड़ी ऋतु है सुहानी।
महफ़िल है सजी शेरो सुख़न की है रवानी।
अब बात कोई उनसे नहीं होगी ज़बानी।
जो लिख न सके कोई नयी यार कहानी।
बेकार लगे मुझको तो लाचार जवानी।
इकताज़ा ग़ज़ल लिख रहाहूँ सोचसमझकर,
दरिया की तरह जिसमें हो बेबाक रवानी।
आसाम से गुजरात तलक बाढ़ का मंज़र,
हरसिम्त फ़क़त दिखरहा बस पानी ही पानी।
दिल चाहता तो था नहीं दिल तोड़ दूँ उनका,
ज़िद ठान के बैठी थी अना एक न मानी।
— हमीद कानपुरी