पुस्तक समीक्षा

समीक्षा – मानवमीत लघुकथाएं

लघुकथाकार – मीरा जैन

संस्करण – 2019

मूल्य – 250 रु.

प्रकाशक – सूर्य मंदिर प्रकाशन बीकानेर

समीक्षक – प्रो. डा. शरद नारायण खरे

लघुकथाएं लघु होते हुए भी अपना व्यापक प्रभाव रखती हैं। वे विसंगतियों, विद्रूपताओं, विडंबनाओं और नकारात्मकताओं पर प्रहार करती है इसीलिये आकार में अल्प होने के बावजूद भी लघुकथाएं अपना गहरा प्रवाह छोड़ती है वर्तमान में व्यस्तता के युग में व्यक्ति के पास उपन्यास व दीर्घ कहानियाॅ पढ़ने के लिये समयाभाव है इसीलिये लघुकथाएं साहित्य की एक सशक्त व क्षमतावान विधा बनकार उभरी है जो स्वतंत्र व समर्थ विधा के रुप में मान्यता हासिल कर चुकी है।

मीरा जैन एक ऐसी समर्थ लघुकथाकार है जिनकी लघुकथाएं आज देश के प्रतिष्ठित प्रकाशनों में नियमित रुप से अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही है वे एक अति गंभीर, भावप्रयण, समसामयिक व पैनी लघुकथाकार हैं उनकी लघुकथाओं में हमें एक विशिष्ट अनुभवपरकता, परिपवक्ता, उत्कृष्ट गतिशीलता दृष्टिगोचर होती है।

समीक्षा कृति ‘मानवमीत लघुकथाएं‘ की समस्त लघुकथाएं विशिष्ट व चोखी हैं अधिकांश के विषय नवीन है यदि पुराने हैं तो भी कथ्य, शिल्प एवं संदेश की दृष्टि में नवीनता है हर लघुकथा में प्रायः भावों की गहराई, विचारों का अनंत विस्तार, बोध दृष्टि व संप्रेषणीयता के साथ नकारात्मकता पर प्रहार व सकारात्मकता का समर्थन है। यह यथार्थ है कि मीरा जैन एक स्वस्थ समाज की रचना के प्रति आतुर व प्रयासरत हैं उनमें भावुकता है, संवेदनशीलता है, चिंतनशीलता है तो अपनेआप में एक अनूठी मौलिकता भी है देश व समाज में जहाॅ कुछ घटित हो रहा है उस पर मीरा जी की पैनी नजर है जो उनकी लघुकथाओं में दृष्टव्य है। वे समिष्ट में व्यष्टि तथा व्यष्टि में समिष्ट खोजने में सक्षम है उनका लेखन मानवीय मूल्यों, नैतिक सराकारों व सांस्कृतिक चेतना के लिये सर्मिर्पत है यही कारण है उनकी लघुकथाएं आकार में सीमित होन के उपरांत भी अपना अनंत विस्तार रखती हैं।

समाज में व्याप्त विकारों को देखकर लेखिका द्रवित व आक्रोशित तो होती है पर कदापि वे मायूस व हताश नही होती हैं बल्कि अपनी कलम को हथियार बनाकर विसंगतियों पर प्रहार करते हुए स्वस्थ तथा उज्जवल आगत का पथ भी प्रशस्त करती है उनकी पैनी नजर पूर्ण चेतन्यता के साथ अनुशासन धारण करके लघुकथाओं का सृजन करती है। वे सक्रिय, ओजस्वी, सारस्वत चेतना से आप्लवित एक स्वनामधन्य लेखिका है। अनेक कृतियों की सृजक, अनेक सम्मानों से विभूषित मीरा जैन की यह कृति लघुकथा के क्षेत्र में एक विशेष उपलिब्ध स्वीकार की जायेगी और निश्चित ही सुधि पाठकों पसंद आयेगी। मेरा विश्वास है कि मीरा जैन की समस्त लघुकथाएं एवं नैतिकता से परिपूर्ण यह कृति मानव, परिवार, समाज व देश सभी के लिये उपयोगी सिद्ध होगी। अशुद्धि रहित प्रिंटिंग, सादगीपूर्ण मुख्य पृष्ठ विशेष आर्कषण का प्रतिनिधित्व करती है। मै रचनाकार व उनकी कृति की लोकप्रियता व यशस्विता की कामना करता हॅू।

— प्रो. डा. शरद नारायण खरे

*प्रो. शरद नारायण खरे

प्राध्यापक व अध्यक्ष इतिहास विभाग शासकीय जे.एम.सी. महिला महाविद्यालय मंडला (म.प्र.)-481661 (मो. 9435484382 / 7049456500) ई-मेल-khare.sharadnarayan@gmail.com