लघुकथा

पगडंडी

”देखो जी, कितने सालों से इनका पानी के ओवर पेमेंट का केस चल रहा है, लेकिन मैनेजमेंट कमेटी सुनने-सुलझाने को तैयार ही नहीं हो रही.” मिस्टर मित्तल को देखते ही हमेशा की तरह मिस्टर यादव ने सोसाइटी के एक मेंबर के सामने राग छेड़ दिया.
”क्या कहते हैं?” उनकी स्वाभाविक जिज्ञासा थी.
”वे कहते हैं, पिछली कमेटी ने क्यों नहीं किया? अब तो अकाउंट बंद हो चुके हैं.”
”भला यह भी कोई बात हुई! किसी से पैसे लेने हों तो नहीं लेंगे क्या?”
”यह कही न सौ बात की एक बात! फिर जब 70-72 साल से चले आ रहे अनुच्छेद 370 को समाप्त किया जा सकता है, तो इस केस को सुलझाने में क्या दिक्कत है!” मिस्टर मित्तल ने तुरुप का इक्का छोड़ दिया था, ”आखिर तो किसी को पगडंडी को छोड़कर नई राह का मार्ग प्रशस्त ही करना होगा न!”
मिस्टर मित्तल के इस वाक्य को वहां से गुजरते हुए मैनेजमेंट कमेटी के सेक्रेटरी ने सुन लिया था. उनकी सोच उद्वेलित हो गई थी और उन्होंने मिस्टर मित्तल के केस को खुले दिल से सुलझाने का आमंत्रण दे दिया था.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “पगडंडी

  • लीला तिवानी

    विकास के लिए पगडंडी छोड़कर नया रास्ता भी खोजना होता है. ऐसा न होने पर सुधार और विकास बाधित रहता है. सुनियोजित प्रयास करने पर आखिर अनुच्छेद 370 को भी सफलतापूर्वक समाप्त किया जा सका न! जम्मू-कश्मीर में ईद भी शांति से मनाई जा सकी.

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