गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

क्यों करें ‌कोई शिकायत दोस्तों
है बुरी रोने की आदत दोस्तों

जो कभी कहते थे खुद को बावफा
सामने है अब हक़ीक़त दोस्तों

बेसबब ही खुद को उनपर वार के
सह रहा है दिल मलामत दोस्तों

जाओ अब मुझको अकेला छोड़ दो
मत करो कोई सियासत दोस्तों

हौसला है अब भी गिरकर मैं उठूं
फिर लिखूंगी इक इबारत दोस्तों

— साधना सिंह

साधना सिंह

मै साधना सिंह, युपी के एक शहर गोरखपुर से हु । लिखने का शौक कॉलेज से ही था । मै किसी भी विधा से अनभिज्ञ हु बस अपने एहसास कागज पर उतार देती हु । कुछ पंक्तियो मे - छंदमुक्त हो या छंदबध मुझे क्या पता ये पंक्तिया बस एहसास है तुम्हारे होने का तुम्हे खोने का कोई एहसास जब जेहन मे संवरता है वही शब्द बन कर कागज पर निखरता है । धन्यवाद :)