कविता

भादों का महीना

बरसते भादों का महीना है
प्रिये तुमको भीगके जाना है
बोलती कोयल कुहू-कुहू
हमने तुम्हें ही अपना माना है
शीतल समीर चलती, मोर नाचते
कल-कल कहती नदी बहती
हमारे हृदय का कहना है
बरसते भादों का महीना है
ताल-तलैया, पोखर लेतीं हिलोरे
मन तुम्हारा, मन हमारा डोले
तुमको लज्जा के साये में चमकना है
बरसते भादों का महीना है
खेतों की हरियाली सा यौवन तुम्हारा
बड़ा हसीं, बड़ा प्यारा चेहरा तुम्हारा
खाते हैं कसम साथ जीना-मरना है
बरसते भादों का महीना है
— मुकेश कुमार ऋषि वर्मा 

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

नाम - मुकेश कुमार ऋषि वर्मा एम.ए., आई.डी.जी. बाॅम्बे सहित अन्य 5 प्रमाणपत्रीय कोर्स पत्रकारिता- आर्यावर्त केसरी, एकलव्य मानव संदेश सदस्य- मीडिया फोरम आॅफ इंडिया सहित 4 अन्य सामाजिक संगठनों में सदस्य अभिनय- कई क्षेत्रीय फिल्मों व अलबमों में प्रकाशन- दो लघु काव्य पुस्तिकायें व देशभर में हजारों रचनायें प्रकाशित मुख्य आजीविका- कृषि, मजदूरी, कम्यूनिकेशन शाॅप पता- गाँव रिहावली, फतेहाबाद, आगरा-283111