गीतिका/ग़ज़लपद्य साहित्य

आंखों को गर अश्कों से

 

आंखों को गर अश्कों से, भिगोना ज़रूरी है।
पलकों में ख्वाबों का भी संजोना ज़रूरी है।।

सुकून की तलाश  भले उम्र भर रहे।
पहले ज़रा से दर्द का, होना ज़रूरी है।।

चेहरे से बेशक नूर चाँद का बरसता है।
बातों को भी अदब में भिगोना ज़रूरी है।।

सपनों की पौध को ज़रा ज़िंदा सा रखने को।
उम्मीद की  मिट्टी  में डुबोना ज़रूरी है।।

फूलों की नज़ाकत की गर मुरीद हो ‘लहर’।
दामन में कुछ काँटे भी पिरोना ज़रूरी है।।

*डॉ. मीनाक्षी शर्मा

सहायक अध्यापिका जन्म तिथि- 11/07/1975 साहिबाबाद ग़ाज़ियाबाद फोन नं -9716006178 विधा- कविता,गीत, ग़ज़लें, बाल कथा, लघुकथा