लघुकथा

चाट का ठेला

“तुम सारा दिन यहाँ अपने पापा के साथ काम ही करते रहते हो या पढ़ने भी जाते हो? देखो बेटा पढ़ना-लिखना भी बहुत जरूरी है ।”

“क्यों अंकल?”

“पढ़ लिख कर तुम अच्छी नौकरी कर सकते हो और अच्छी जिंदगी बिता सकते हो ।”

“कितना पढ़ना जरूरी है अंकल, अच्छी जिंदगी के लिए ?”

“अब……ये …तो तुम पर निर्भर करता है कि तुम कितना पढ़ सकते हो, कितनी मेहनत कर सकते हो।”

“मेरे चाचू जितना ?”

“चाचू जितना मतलब?”

“मेरे चाचू ने एम.बी.ए किया है न !”

“अरे वाह, इतनी पढ़ाई कर सको, तो बात ही क्या है ! तुम्हारे तो घर में ही उदाहरण मौजूद है। तुम भी चाचू की तरह मेहनत करो, तो फिर तुम्हें अपने पापा की तरह चाट का ठेला नहीं लगाना पड़ेगा ।”

“क्यों साहब जी? चाट के ठेले में क्या बुराई है?” अब तक इस सारे संवाद को सुनता हुआ चाट वाला बोल पड़ा- “मैंने इसी चाट के ठेले की कमाई  से अपने छोटे भाइयों को पढ़ाया लिखाया, अपनी बहन की शादी की ।  मैं अपने सारे बच्चों को भी पढ़ा रहा हूँ | जिससे आप बात कर रहे हैं न, वह भी सातवीं कक्षा में पढ़ता है| स्कूल के बाद मेरी मदद करता है । ”

“ये तो बड़ी अच्छी बात है भाई !”

“वैसे आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि मैं इसी ठेले की कमाई से अपने एम.बी.ए भाई की भी थोड़ी बहुत मदद कर देता हूँ क्योंकि उसकी तनख्वाह अभी इतनी नहीं हैं न कि घर ठीक से चला सके ।”

— शोभना श्याम

शोभना श्याम

जन्मतिथि - 18 जनवरी, मेरठ शिक्षा - एम.ए.(हिंदी), बी.एड. व्यवसाय – कला( पेंटिंग ) अध्यापन एवं अनुवाद प्रकाशित पुस्तकें- काव्य संग्रह-- ‘सुबह की पलकों पर’ हिंदी अकादमी से प्रकाशित , लघुकथा संग्रह -- ‘बिखरने से पहले तथा पकना एक कहानी का देश के विभिन्न शहरों तथा लन्दन ,थाईलैंड, कम्बोडिया,ताशकंद, आदि देशों के काव्य-मंचों और गोष्ठियों में कविता पाठ एवं मंच संचालन आकाशवाणी दिल्ली से कविताओं कहानियों तथा वार्ताओं का नियमित प्रसारण विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लघुकथा ,कहानी , मुक्त छंद कविता , गीत , गजल , दोहा ,माहिया , हाइकू , संस्मरण , आलेख आदि विभिन्न पुरुस्कार एवं सम्मान मो. –9953235840 ईमेल - shobhanashubhi@gmail.com