कविता

किसी बहाने ही आ जाओ

प्यासी धरती जैसे तरसे बारिश की एक बूंद की खातिर,
मेरा मन भी मचल रहा है तुमसे अब मिलने की खातिर।
बेजुबान एहसास मेरे अब रात की खामोशी को तोड़ रहे,
दिल के बेचैन अल्फाज मेरे अब कोरे कागज को खोज रहे।
सुरमई शाम मदमस्त समा है ऐसे में दरस दिखा जाओ,
कोई तो तरकीब निकालो किसी बहाने ही आ जाओ।
ख्वाब अधूरे मेरे तुम बिन उनको पूरा कर जाओ,
मौन पड़े मन के तारों में रागिनी कोई छेड़ जाओ।
इंद्रधनुष के रंगों वाले ,मेरे अरमान मचल रहे है,
चांद की चांदनी में छुपकर पास मेरे अब आ जाओ।

*कल्पना सिंह

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