गीतिका/ग़ज़ल

बहक जाता था

खिलता गुलाब थी, तू खिलता गुलाब है
सूरत तेरी लाजवाब थी, लाजवाब है।
तुझे देख के अक्सर बहक जाता था मैं
मेरी आदत खराब थी, आदत खराब है।
तू मीठे शहद सी थी, मीठे शहद सी है
तेरी कीमत बेहिसाब थी बेहिसाब है।
नशा छा जाता है जो तू पास से गुजरे
मनमोहक अदाएँ शराब थी शराब है।
कोई नही है मिसाल तेरी, बेमिसाल है
तू सच में माहताब थी, और माहताब है।
यूँ तुझको पाना है द्विवास्वप्न के जैसा
तुम एक ख्वाब थी और एक ख्वाब है।
रिश्ता सदा पाकीजा था हम दोनों का
सब खुली किताब थी खुली किताब है।
आशीष तिवारी निर्मल

*आशीष तिवारी निर्मल

व्यंग्यकार लालगाँव,रीवा,म.प्र. 9399394911 8602929616