कविता

फिक्र

कहना बहुत आसान है तनिक फिक्र न करो.
जैसे सब कुछ सहो फिर कहो जिक्र न करो.
फिक्र इंसान की अनचाही मानसिक फितरत है.
उससे मुक्त हो सकें नहीं सबमें इतनी कूव्वत है.
फिक्र दूर करने की कवायद का नतीजा है दुनिया.
चल अचल सब कुछ नश्वर है समझा गए हैं गुनिया.
पर इंसान संग्रह से बाज नहीं आता है.
वैसे उसे पता है कि आखिर में साथ कुछ नहीं जाता है

उमेश शुक्ल

उमेश शुक्ल

उमेश शुक्ल पिछले 34 साल से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं। वे अमर उजाला, डीएलए और हरिभूूमि हिंदी दैनिक में भी अहम पदों पर काम कर चुके हैं। वर्तमान में बुंदेलखंड विश्वविद्यालय,झांसी के जनसंचार एवं पत्रकारिता संस्थान में बतौर शिक्षक कार्यरत हैं। वे नियमित रूप से ब्लाग लेखन का काम भी करते हैं।