कविता

लोग

मौसम की तरह बदल जाते हैं अब लोग.
इरादतन वो कर रहे शायद नहीं ये संयोग
सुना था गुफ्तुगू ख्वाबों में भी हो जाती है
ये बात और है कि ऐसा कर पाते हैं चंद लोग
वैसे चाह की राह में रोड़ा नहीं कोई बन सकता.
इरादा पक्का हो तो मिलन का सबब बन सकता.
चाह की टीस तरंगों की मानिंद है प्यारे
वो प्रिय तक संदेशे पहुंचा देती है सारे

उमेश शुक्ल

उमेश शुक्ल

उमेश शुक्ल पिछले 34 साल से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं। वे अमर उजाला, डीएलए और हरिभूूमि हिंदी दैनिक में भी अहम पदों पर काम कर चुके हैं। वर्तमान में बुंदेलखंड विश्वविद्यालय,झांसी के जनसंचार एवं पत्रकारिता संस्थान में बतौर शिक्षक कार्यरत हैं। वे नियमित रूप से ब्लाग लेखन का काम भी करते हैं।