कविता

तेरी निगाहें

तेरी निगाहों की तपिश पाकर,
मोम बनकर पिघल जाती हूं मैं।
तेरी बाहों के आगोश में आकर,
खुशबू से बिखर जाती हूं मैं।
तेरी तारीफ के अल्फाज में ढल कर,
ग़ज़ल बन कागज पर उतर जाती हूं मैं।
तेरी धड़कन के इतने करीब आ कर,
दिल बनकर समा जाती हूं मैं।
तेरे जज्बातों, खयालों की पनह पा,
 दुल्हन सी संवर जाती हूं मैं।
— कल्पना सिंह

*कल्पना सिंह

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