कविता

फिर सदाबहार काव्यालय- 38

हिंदी पखवाड़े पर विशेष- 1

 

अलंकार (सूत्र रूप में कविता)

शब्द और अर्थ को सौंदर्य दे जो,
मन पर अधिक प्रभाव डालती,
साहित्य की वह वर्णन-शैली,
स्वतः ही अलंकार कहलाती.

शब्दों में हो रमणीयता और
बाह्य सौंदर्य में वृद्धि करें,
अनुप्रास, यमक, श्लेष आदि,
शब्दालंकार के नाम खरे.

अर्थ में हो सौंदर्य जहां पर,
रचना का सौष्ठव निखरे,
उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा आदि,
अर्थालंकार मोती बन बिखरे.

स्वर में चाहे भिन्नता हो पर,
व्यंजन की हो आवृत्ति,
वाचन में रस-धार बहे तो,
अनुप्रास की हो सृष्टि.

शब्दों की हो आवृत्ति और,
अर्थ भिन्न हों शब्दों के,
यमक अलंकार वह कहलाता,
भाता है मन रसिकों के.

एक शब्द ही अनेक अर्थों का,
बोध कराता श्लेष में,
पानी ही मोती, मानस, चून का,
बोध कराता श्लेष में.

एक वस्तु की अन्य वस्तु से,
होती समानता उपमा में,
उपमेय, उपमान, साधारण धर्म और,
वाचक शब्द हैं उपमा में.

सादृश्य अधिक होता जब इतना,
उपमेय में उपमा का हो आरोप,
रूपक की सृष्टि तब होती,
काव्य का यह रूप अनूप.

उपमेय में उपमान की संभावना हो,
उत्प्रेक्षा अलंकार वहां होता,
मानो, मनु, जनु आदि शब्द हैं,
उत्प्रेक्षा का सूचक होता.

खूब बढ़ाकर, खूब चढ़ाकर,
बात कहें अतिशयोक्ति में,
स्वर्ग से धरती मिलती है और,
मेघ खड़े हैं पंक्ति में.

निंदा के मिस स्तुति हो,
स्तुति के मिस निंदा हो,
व्याजस्तुति अलंकार वहां है,
स्तुति हो या हो निंदा.

स्त्री की शोभा गहने हैं,
काव्य की शोभा अलंकार,
गहने अधिक न सौंदर्य बढ़ाते,
अलंकार-आधिक्य बेकार.

लीला तिवानी

 

मेरा संक्षिप्त परिचय
मुझे बचपन से ही लेखन का शौक है. मैं राजकीय विद्यालय, दिल्ली से रिटायर्ड वरिष्ठ हिंदी अध्यापिका हूं. कविता, कहानी, लघुकथा, उपन्यास आदि लिखती रहती हूं. आजकल ब्लॉगिंग के काम में व्यस्त हूं.

मैं हिंदी-सिंधी-पंजाबी में गीत-कविता-भजन भी लिखती हूं. मेरी सिंधी कविता की एक पुस्तक भारत सरकार द्वारा और दूसरी दिल्ली राज्य सरकार द्वारा प्रकाशित हो चुकी हैं. कविता की एक पुस्तक ”अहसास जिंदा है” तथा भजनों की अनेक पुस्तकें और ई.पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है. इसके अतिरिक्त अन्य साहित्यिक मंचों से भी जुड़ी हुई हूं. एक शोधपत्र दिल्ली सरकार द्वारा और एक भारत सरकार द्वारा पुरस्कृत हो चुके हैं.

मेरे ब्लॉग की वेबसाइट है-
https://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/rasleela/

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “फिर सदाबहार काव्यालय- 38

  • लीला तिवानी

    कक्षा 9-10 की छात्राओं को पढ़ाने-समझाने के लिए 40 साल पहले हमने सूत्र रूप में यह कविता लिखी थी. हिंदी साहित्य के ये सूत्र आज भी वैसे ही सदावहार हैं, इसलिए यह कविता भी सदावहार है. छात्रों में हिंदी साहित्य के प्रति रुचि जागृत करने के लिए एक सूत्र सुनाकर उसे समझाने और फिर उसकी परिभाषा बताने-लिखवाने से हमारी छात्राओं के लिए हिंदी पढ़ना-समझना आसान भी हो गया और रोचक भी.

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