धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

भारतीय संस्कृति में प्रेम विवाह की सार्थकता या निरर्थकता

भारतीय संस्कृति का अध्ययन करने पर ज्ञात होता है कि भारत में विवाह की आठ पद्धतियां/रीतियां प्राचीन काल से प्रचलित रही हैं, इनमें मुख्यतः चार प्रकार के विवाह परंपरायें अधिक प्रभाव में हैं, जो इस प्रकार हैं:- 01-ब्रह्म विवाह, 02-दैव विवाह, 03-प्रेम (गान्धर्व) विवाह और 04-राक्षस विवाह।
वैदिक काल में अधिकांशतः विवाह वैदिक रीति-रिवाज से संपन्न होते थे, जो ब्रह्म विवाह कहलाता था। इस प्रकार के विवाह देव व ऋषि पुत्र-पुत्रियों के मध्य करवाये जाते थे। इसके कुछ अवधि के पश्चात् देव विवाह की परंपरा प्रचलित हुई, जो सबसे महत्वपूर्ण व सर्वमान्य विवाह पद्धति रही है। यह विवाह मुनियों व सद्गृहस्थियों के पुत्र-पुत्रियों के मध्य संपन्न किया जाता था, यह विवाह अपने बड़े-बुजुर्गों की आज्ञा से ईश्वर को साक्षी मानकर ज्योतिषीय ग्रह-नक्षत्र के मिलान के पश्चात् शुद्ध वैदिक मंत्रों द्वारा पूजनपूर्वक किया जाता है। इसे देव विवाह कहा जाता है। यह विवाह आज भी हमारे हिन्दु समाज में सबसे अधिक प्रचलन में है और विवाह की सर्वोत्तम पद्धति है। इस मध्य स्वयंवर प्रथा वाला विवाह भी प्रचलन में रहा, जिसका उल्लेख हमारे इतिहास व धार्मिक ग्रन्थों में मिलता है।
गान्धर्व विवाह, जिसे प्रेम विवाह के नाम से जाना जाता है। इसे भी पूर्व में स्वीकृत विवाह पद्धति में से माना जाता रहा है। गन्धर्व व अप्सराओं में स्त्री-पुरुष के मध्य आपस में एक-दूसरे की सहमति के आधार पर प्रेम-प्यार भावना से किये जाने वाले विवाह का प्रभाव भी समाज में बना रहा। गन्धर्वों में इसका प्रचलन अधिक होने के कारण इसे गान्धर्व विवाह कहा जाता है। जब कोई पुरुष किसी स्त्री से कामवासना की इच्छा रखने के उद्देश्य से संबंधित युवती व स्त्री की इच्छा जाने बिना जबर्दस्ती उससे वैवाहिक काम संबंध स्थापित करता, तो उसे राक्षस विवाह की संज्ञा दी जाती थी। यह पद्धति अधिकांशतः दैत्यों व राक्षसों के मध्य प्रचलित था, लेकिन समय चक्र के बदलते प्रभाव के कारण आज भी राक्षसी प्रवृत्ति वाले लोगों द्वारा इस प्रकार के वैवाहिक काम संबंधों को अपनाया जा रहा है। जो विकृत मानसिकता का सूचक है।
आज सबसे अधिक घटित होती घटनाओं के आधार पर जो सुनाई पड़ता है व पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से पढ़ने को मिलता है, वह है प्रेम विवाह। निश्चित ही प्रेम विवाह स्त्री व पुरुष के मध्य आपसी सहमति व दोस्ती के आधार पर प्रेम-प्यार के वशीभूत होकर किये जाने के कारण सबसे उपयुक्त हो सकता है, जिसके उदाहरण पूर्वकाल में दिखाई देते हैं, राजा दुष्यंत व शकुंतला के मध्य हुआ वैवाहिक संबंध प्रेम विवाह ही कहलाता है। निश्चित ही वर्तमान परिपेक्ष में प्रेम विवाह सबसे अच्छी वैवाहिक पद्धति है, लेकिन आज के बदलते हुए जीवन परिवेश को देखते हुए इसकी कई विकृतियां भी स्पष्ट दिखाई देती हैं, बिना गंभीरतापूर्वक सोचे और मात्र शारीरिक सुंदरता को देखकर ही प्रथम दृष्टि प्यारवश होकर लिए गये वैवाहिक निर्णय बाद के लिए दुखदायक ही महसूस किये गये।
आज जिस प्रकार से नवयुवक व नवयुवतियों में बिना अपने माँ बाप की सहमति के प्रेम विवाह करने की बाढ़ जैसी आती जा रही है, उसी प्रकार इसके दूरगामी परिणाम भी घातक होते जा रहे हैं। कारण कि जवानी एक ऐसी उम्र है, जिसमें कुछेक को छोड़कर अधिकांश जन किसी भी भावनात्मक कार्य को बिना दूर दृष्टि के भावनाओं के ज्वार में बहकर अपने क्षणिक सुख की अभिलाषा में अपने अमूल्य जीवन व भविष्य को अंधकार में धकेलते जा रहे। जिसमें बाद में जब एक-दूसरे पर पारिवारिक जवाबदारियों का बोझ बढ़ने लगता तो प्यार जैसी भावना दूर होकर आपसी आरोप-प्रत्यारोप का सीलसीला प्रारंभ होने लगता है।
बालिग जोड़ों के आपसी सहमति से किये गये प्रेम विवाह को भले ही कानूनी वैधता प्राप्त है, लेकिन इसमें अधिकांश कम आयु व मात्र प्यार के बहकावे में हुए विवाह से नवयुवक या नवयुवती दोनों ही बाद में परेशानी झेलने को मजबूर होते हैं, लेकिन दुखद पहलु यह है कि अत्यधिक संवेदनशील भावना के कारण सबसे ज्यादा दुष्परिणाम युवतियों को भोगना पड़ता है। यही नहीं इससे हमारी भारतीय वैदिक संस्कृति भी दिन-प्रतिदिन दुष्प्रभावित होती जा रही है। पाश्चात्य संस्कृति की देखा-देखी में समलैंगिक संबंधों व विवाह को वैधानिकता प्रदान करना तथा विजातीय विवाह को प्रोत्साहित करने का प्रावधान किसी भी दृष्टि से भारतीय सनातनी वैदिक संस्कृति के अनुकूल नहीं है। विजातीय संबंधों में विजातीय जोड़ों के द्वारा उत्पन्न बच्चों में बुद्धि की तीक्ष्णता बढ़ने और सजातीय में जन्मे बच्चों की बुद्धि में इतनी अधिक चातुर्यता व तीक्ष्णता न होने का कारण देकर इस प्रकार की व्यवस्था को अपनाने का प्रयास हमारी प्राचीन परंपरा व संस्कृति की क्षति पहुँचाना ही माना जा सकता है।
समय रहते इस प्रकार की दैहिक स्वच्छन्दता से समाज यदि सचेत नहीं होगा तो भविष्य किस स्तर का होगा, यह सोचकर या भविष्य में होने वाले दुष्परिणामों पर पछताने के अलावा कुछ भी नहीं बच पायेगा। निश्चित ही समाज को एक सूत्र में सामाजिक एकता व प्रेम सौहार्दता के रुप में बांधे रखने के लिए आपसी प्रेम संबंधों की परम आवश्यकता है, लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं होना चाहिए कि बिना बड़े-बुजुर्गों व अभिभावकों की सहमति के जवान लड़के व लड़कियों को इस प्रकार विवाहेत्तर संबंधों में बंधे रहने की स्वच्छंदता हो। निश्चित ही गंभीर सोचनीय विषय है।
— शम्भु प्रसाद भट्ट “स्नेहिल”

शम्भु प्रसाद भट्ट 'स्नेहिल’

माता/पिता का नामः- स्व. श्रीमति सुभागा देवी/स्व. श्री केशवानन्द भट्ट जन्मतिथि/स्थानः-21 प्र0 आषाढ़, विक्रमीसंवत् 2018, ग्राम/पोस्ट-भट्टवाड़ी, (अगस्त्यमुनी), रूद्रप्रयाग, उत्तराखण्ड शिक्षाः-कला एवं विधि स्नातक, प्रशिक्षु कर्मकाण्ड ज्योतिषी रचनाऐंः-क. प्रकाशितःः- 01-भावना सिन्धु, 02-श्रीकार्तिकेय दर्शन 03-सोनाली बनाम सोने का गहना, ख. प्रकाशनार्थः- 01-स्वर्ण-सौन्दर्य, 02-गढ़वाल के पावन तीर्थ-पंचकेदार, आदि-आदि। ग. .विभिन्न क्षेत्रीय, राष्ट्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की पत्र/पत्रिकाओं, पुस्तकों में लेख/रचनाऐं सतत प्रकाशित। सम्मानः-सरकारी/गैरसरकारी संस्थाओं द्वारा क्षेत्रीय, राष्ट्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के तीन दर्जन भर से भी अधिक सम्मानोपाधियों/अलंकरणों से अलंकृत। सम्प्रतिः-राजकीय सेवा/विभिन्न विभागीय संवर्गीय संघों तथा सामाजिक संगठनों व समितियों में अहम् भूमिका पत्र व्यवहार का पताः-स्नेहिल साहित्य सदन, निकटः आंचल दुग्ध डैरी-उफल्डा, श्रीनगर, (जिला- पौड़ी), उत्तराखण्ड, डाक पिन कोड- 246401 मो.नं. 09760370593 ईमेल spbsnehill@gmail.com