धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

यह अंधेरगर्दी कब तक?

देवदत्त पटनायक काल्पनिक उपन्यास लिखने वाले लेखक है जिनके विषय मुख्य रूप से पौराणिक देवी-देवता होता हैं। आपके उपन्यास न केवल तथ्य रहित होते है बल्कि वैदिक सिद्धांतों से भी कोसो दूर होते हैं। मेरे विचार से यह व्यापार तुरंत बंद किया जाना चाहिए क्यूंकि इसके दूरगामी परिणामों पर कोई ध्यान नहीं देता। आज हमारी युवा पीढ़ी मूल ग्रंथों को न पढ़कर देवदत्त पटनायक और अमिश त्रिपाठी के ग्रंथों मात्र को पढ़कर अपने कर्तव्य की इतिश्री मान लेती हैं। न उन्हें सत्य का कभी बोध हो पाता हैं। न ही ये काल्पनिक ग्रन्थ उनके जीवन में कोई विशेष आध्यात्मिक प्रभाव डाल पाते हैं। सत्य यह है कि हमने अपने  इतिहास से कभी कोई सबक नहीं सीखा। राजा भोज के काल में किसी ने रामायण आदि में कल्पित श्लोक मिला दिए थे, तो राजा भोज ने दंड स्वरूप उसके हाथ कटवा कर कठोर दंड दिया था। ताकि ऐसे कुकृत्यों की दोबारा पुनरावृति न हो। मध्य जैन/बौद्ध काल में भी ऐसी मिलावट हुई। पर तब राजनीती सत्ता ने ऐसे कृत्य करने वालों को कोई दंड नहीं दिया। इसका परिणाम स्वरुप अनेक कल्पित पुस्तकों की रचना हुई। आज हमें वाल्मीकि रामायण से भिन्न रामायण के 300 भिन्न भिन्न स्वरूपों के रूप में देखते हैं। जो न केवल एक दूसरे के विपरीत हैं। अपितु उनमें अनेक अश्लील प्रसंग भी लिख दिए गए हैं। इन्हीं मिलावटों को आधार बनाकर रामानुजम जैसे लेखक 300 रामायण पुस्तक लिखते हैं। जिसका उद्देश्य केवल और केवल युवा पीढ़ी को भ्रमित करना होता हैं।
           देवदत्त पटनायक ने भी अतिउत्साह में आकर लिख दिया कि वेदों में शिव का कोई वर्णन नहीं हैं। मुझे पूरा विश्वास है कि पटनायक ने अपने जीवन में संभवत वेदों को कभी देखा भी नहीं होगा।  पढ़ना तो बहुत दूर की बात थी। इस लेख में हम वेदों के शिव के प्रमाण देकर पटनायक की अज्ञानता को सिद्ध करेंगे।
वेदों के शिव–
हम प्रतिदिन अपनी सन्ध्या उपासना के अन्तर्गत नमः शम्भवाय च मयोभवाय च नम: शंकराय च मयस्कराय च नमः शिवाय च शिवतराय च(यजु० १६/४१)के द्वारा परम पिता का स्मरण करते हैं।
अर्थ- जो मनुष्य सुख को प्राप्त कराने हारे परमेश्वर और सुखप्राप्ति के हेतु विद्वान् का भी सत्कार कल्याण करने और सब प्राणियों को सुख पहुंचाने वाले का भी सत्कार मङ्गलकारी और अत्यन्त मङ्गलस्वरूप पुरुष का भी सत्कार करते हैं,वे कल्याण को प्राप्त होते हैं।
इस मन्त्र में शंभव, मयोभव, शंकर, मयस्कर, शिव, शिवतर शब्द आये हैं जो एक ही परमात्मा के विशेषण के रूप में प्रयुक्त हुए हैं।
वेदों में ईश्वर को उनके गुणों और कर्मों के अनुसार बताया है–
त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।
                    -यजु० ३/६०
विविध ज्ञान भण्डार, विद्यात्रयी के आगार, सुरक्षित आत्मबल के वर्धक परमात्मा का यजन करें। जिस प्रकार पक जाने पर खरबूजा अपने डण्ठल से स्वतः ही अलग हो जाता है वैसे ही हम इस मृत्यु के बन्धन से मुक्त हो जायें, मोक्ष से न छूटें।
या ते रुद्र शिवा तनूरघोराऽपापकाशिनी।
तया नस्तन्वा शन्तमया गिरिशन्ताभि चाकशीहि।।
                         -यजु० १६/२
हे मेघ वा सत्य उपदेश से सुख पहुंचाने वाले दुष्टों को भय और श्रेष्ठों के लिए सुखकारी शिक्षक विद्वन्! जो आप की घोर उपद्रव से रहित सत्य धर्मों को प्रकाशित करने हारी कल्याणकारिणी देह वा विस्तृत उपदेश रूप नीति है उस अत्यन्त सुख प्राप्त करने वाली देह वा विस्तृत उपदेश की नीति से हम लोगों को आप सब ओर से शीघ्र शिक्षा कीजिये।
अध्यवोचदधिवक्ता प्रथमो दैव्यो भिषक्।
अहीँश्च सर्वाञ्जम्भयन्त्सर्वाश्च यातुधान्योऽधराची: परा सुव।।
                             -यजु० १६/५
हे रुद्र रोगनाशक वैद्य! जो मुख्य विद्वानों में प्रसिद्ध सबसे उत्तम कक्षा के वैद्यकशास्त्र को पढ़ाने तथा निदान आदि को जान के रोगों को निवृत्त करनेवाले आप सब सर्प के तुल्य प्राणान्त करनेहारे रोगों को निश्चय से ओषधियों से हटाते हुए अधिक उपदेश करें सो आप जो सब नीच गति को पहुंचाने वाली रोगकारिणी ओषधि वा व्यभिचारिणी स्त्रियां हैं, उनको दूर कीजिये।
या ते रुद्र शिवा तनू: शिवा विश्वाहा भेषजी।
शिवा रुतस्य भेषजी तया नो मृड जीवसे।।
                     -यजु० १६/४९
हे राजा के वैद्य तू जो तेरी कल्याण करने वाली देह वा विस्तारयुक्त नीति देखने में प्रिय ओषधियों के तुल्य रोगनाशक और रोगी को सुखदायी पीड़ा हरने वाली है उससे जीने के लिए सब दिन हम को सुख कर।
इस प्रकार से वेदों में शिव, रूद्र आदि नामों से अनेक मन्त्रों में वर्णित हैं।
महर्षि दयानन्द सरस्वती जी ने भी अपने पुस्तक सत्यार्थप्रकाश में निराकार शिव, रूद्र,  नामों की व्याख्या इस प्रकार की है–
-जो दुष्ट कर्म करनेहारों को रुलाता है, इससे परमेश्वर का नाम ‘रुद्र’ है।
– जो कल्याण अर्थात् सुख का करनेहारा है, इससे उस ईश्वर का नाम ‘शङ्कर’ है।
– जो महान् देवों का देव अर्थात् विद्वानों का भी विद्वान्, सूर्यादि पदार्थों का प्रकाशक है, इस लिए उस परमात्मा का नाम ‘महादेव’ है।
– जो कल्याणस्वरूप और कल्याण करनेहारा है, इसलिए उस परमेश्वर का नाम ‘शिव’ है।
पटनायक जैसे लेखक जब स्वयं ही इतने अज्ञानी हैं। तो वह अपने उपन्यासों में कितना कचरा लिखते होंगे। आप स्वयं सोच सकते हैं। इसलिए धार्मिक पात्रों के नाम से उपन्यास पर तत्काल प्रतिबन्ध लगना चाहिए एवं वेदों के सत्य अर्थों का प्रचार होना चाहिए।
– डॉ विवेक आर्य