गीतिका/ग़ज़ल

हिन्दी कविता

यह जो तस्वीरें मैं यादों के रूप में, हर पल दिल से संभालती रही हूं।
जख्मों को मैं मिटाती नहीं कभी,नासूर बन्ने तक पालती रही हूं।
बेशक मुझे पता है हर पल,आज मेरा वक्त खराब चल रहा है साहेब।
अपने हर अच्छे वक्त के इंतजा़र में,बुरे लम्हों को मुस्का के टालती रही हूं,
कचरा कहते हैं लोग जिन यादों को,हीरा मान के तिजोरी में डालती रही हूं,
नादान हैं बेचारे एसा सोचने बाले,मैं यही सोचकर बात टालती रही हूं।
बेशक वो दौर आएगा बगल में फोटो खिंचवाने हर कोई दौड़ आएगा।
बस इसी ख्याल से गै़र जरूरी बातों को अपने जहेंन से नकालती रही हूं।

— दीपक्रांति