लघुकथा

बंदिश

संशोधित मोटर वीइकल ऐक्ट-2019 के लागू होने के बाद सौरभ बहुत डरा हुआ था. कई साल से वह कार चला रहा था. मोटर बाइक चलाते हुए उसने कभी हेलमेट पहना नहीं था, कभी-कभी महज दिखावे के लिए आगे टांग देता था. अब रो जान पर आन पड़ी थी. 35 साल से अधिक उम्र का सौरभ पहली बार लर्निंग लाइसेंस बनवाने पहुंचा था. सीट बेल्ट लगाने की आदत भी उसने डाली नहीं थी, इसलिए दो दिन पहले ही उसे सीट बेल्ट न लगाने पर 10,000 रु. का जुर्माना देना पड़ा था. अब अजीब-सी दहशत के कारण दिल्ली में उसका मन ही नहीं लग रहा था.

”कुछ ही दिनों में ऑस्ट्रेलिया पहुंच जाऊंगा, इस दहशत से तो छुटकारा मिलेगा!’ दिल्ली में एक-एक दिन गिनकर किसी तरह निकालने वाले सौरभ ने सोचा और अपने मित्र को मन-ही-मन धन्यवाद व दुआएं देने लगा, जिसने वीज़ा मिलने में आसानी के लिए उसे ऑस्ट्रेलिया आकर कुछ महीने अपने पास आकर रहने के लिए पत्र भेजा था.

ऑस्ट्रेलिया पहुंचकर उसने राहत की सांस ली. एयरपोर्ट से मित्र के घर जाते हुए रास्ते में ही उसने ऑस्ट्रेलिया की खूबसूरती का जायजा ले लिया था. घरों और रास्तों में खूबसूरती से कटे-छंटे हरे-भरे पेड़, साफ-सुथरे रास्ते मानो आंखों को सुकून दे रहे थे. उसका मित्र भी ऑफिस से आ गया था. थोड़ी देर में डिनर का समय हो गया.

”सौरभ, ऑस्ट्रेलिया पहुंचकर खुश तो हो न!” मित्र ने पूछा. मित्र ने डिनर टेबिल पर बैठते हुए कहा.

”हां यार, तेरी मेहरबानी से पहली बार विदेश देखने का मौका मिला है, बहुत खूबसूरत है.” सौरभ के चेहरे से खुशी छलकी पड़ रही थी.

”अच्छा यार, यहां तुझे जहां भी आना-जाना होगा अकेले ही मैनेज करना पड़ेगा. हम दोनों तो ऑफिस में होंगे, यहां बीच में निकलना मुश्किल होता है.”

”ठीक है” कहने वाला था सौरभ, लेकिन मित्र बोलने से रुके तब न!

”देख सौरभ, जो बातें मैं बता रहा हूं ध्यान से सुनना.” मित्र ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा, ”रास्ते में कहीं थूकना मत, कोई भी कचरा रास्ते पर मत फेंकना, बस, ट्रेन या फेरी के नियत समय से पहले ही स्टैंड पर पहुंच जाना. यहां सारा ट्रांसपोर्ट नियत समय से ही चलता है. बस, ट्रेन या फेरी के आगे की सीट पर पैर मत रखना, वरना 200 डॉलर जुर्माना लग जाएगा. यहां कोई चेक करने वाला दिखेगा नहीं, पर पॉवरफुल सी.सी.टी.वी. से सब पता चल जाता है. जब तक मैं तुझे कमिश्नर के सामने पेश करके तेरी आइ.डी. न दिलवा दूं, तू कोई भी नियम तोड़ेगा तो जुर्माना मेरे नाम से आएगा. मैं तेरा जुर्माना भरने वाला नहीं हूं, तुझे ही भरना पड़ेगा. यहां अनुशासन पहले है, मौज बाद में. अच्छा अब हम सोने जा रहे हैं, सुबह हमें ठीक सात बजने में पांच मिनट पहले ऑफिस पहुंचना है.” मित्र डिनर खत्म होते ही उठते हुए बाकी बातें कल बताने को कहकर मित्र अपने बेडरूम में चला गया.

‘‘और हां, एक बात कहना तो भूल ही गया, अरकार हमें खूबसूरत, स्वच्छ और स्वस्थ देश में रहने का अवसर देने के साथ समस्त सुविधाएं मुहय्या करवाती है, पर हमसे पूर्ण अनुशासन, जिसे तुम बंदिश समझते होगे, की आशा करती है.” मित्र ने गुड नाइट करते हुए कहा.

”यहां अपने देश से भी तगड़ी बंदिश!” सौरभ ऑस्ट्रेलिया की खूबसूरती का राज समझ चुका था.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “बंदिश

  • लीला तिवानी

    जब तक हम कानूनों को न मानने के लिए ”कानून तो बनते ही टूटने के लिए हैं” समझते रहेंगे, तब तक बंदिश ही लगेगी. यह मानने पर कि सीट बेल्ट लगाना या हेलमेट पहनना हमारे लिए हितकारी है, वह धीरे-धीरे स्वनुशासन बन जाएगा. यही स्वनुशासन हमारे और हमारे देश के लिए हितकारी है.

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