लघुकथा

बात बस इतनी सी है ….कि प्रेम है

उसका गुस्सा उसके नशे से अधिक बलशाली हो गया था ,क्योकि उसे पता चल गया था कि उसकी पत्नी को किसी से प्रेम है ।
नशा करके बिना बजह पत्नी से मार पीट करना तो रोज का था लेकिन आज उसे बजह मिल गई ।
उसका पुरुषत्व ये कैसै स्वीकार कर सकता है ।
बिना गिने थप्पड़ मारे जा रहा था ..जब धक गया ,हाथ पकड कर दहलीज तक घसीट कर लेता हुआ गया….
” निकल मेरे घर से चरित्रहीन औरत , बुला अपने आशिक को जो खुद भी शादी शुदा है ,दो बच्चो का बाप है , …”
“एक स्त्री को प्रेम के सिवा कुछ नही चाहिए,  जो वह  हमेशा अपने पति में तलाशती है , लेकिन जो पुरुष स्त्री में सिर्फ पत्नी का रूप देखता है वह प्रेम कर भी नही सकता”
” तो जा न अपने प्रेम के पास …बहुत पैसै बाला है न वह ,जाकर उसी के साथ ऐय्याशी कर ”   कहकर पूरी ताकत से धकेल दिया और तलाक के पेपर्स उसके मुंह पर दे मारे ।
” उठो….”सामने बाहों का सहारा देता हुआ केसर खडा था ।।
” आप ….आवाज हलक में फंस कर रह गई ।।
वह रोये जा रही थी ।
” मैं अपने इस प्रेम को किसी रिश्ते में नही डालना चाहता था ,न नाम देना चाहता था …प्रेम तो बस प्रेम होता है …लेकिन प्रेम को बेसहारा भी नही छोडूंगा … मै तुमको अपना नाम ,अपनी कमाई ,अपना घर सब दूंगा …तुम्हारे बच्चों को पिता का सहारा देना अब मेरा फर्ज है …मैं अपनी पत्नी को भी मना लूँगा …शादी तो नही कर सकता पर तुम्हारी ढाल बनूगां हमेशा”
प्रेम कभी असहाय नही होता ….
केसर ने उसे उसका मुकाम, पहचान , एक सफल बिजनेस बूमेन की दिलाकर अपने प्रेम को अमर कर लिया।।।
— रजनी चतुर्वेदी  

रजनी बिलगैयाँ

शिक्षा : पोस्ट ग्रेजुएट कामर्स, गृहणी पति व्यवसायी है, तीन बेटियां एक बेटा, निवास : बीना, जिला सागर