गीतिका/ग़ज़ल

तुम बिन डसता दिन

तुझ बिन मेरा पहला-दिन,
बेहद सूना-सूना निकला दिन।
था सब कुछ पहले जैसा पर,
मुझे लगा बदला-बदला दिन।
हर पल तुझको ढूंढ़ रहा था,
पागल सा मैं और पगला दिन।
घोर उदासी के सन्नाटों में,
गुजरा धुंधला-धुंधला दिन।
दिन भर रोया तेरी यादों में,
बड़ी मुश्किल से सम्भला दिन।
हर पल गुजरा कैसे मत पूछो,
तुम बिन डसता था उजला दिन।
— आशीष तिवारी निर्मल

*आशीष तिवारी निर्मल

व्यंग्यकार लालगाँव,रीवा,म.प्र. 9399394911 8602929616