लघुकथा

परख

सुनयना ने अपनी खास सहेली सुलेखा से पूछा कि-“इस बार तो यह तय माना जा रहा था कि तुम्हारा रिश्ता पक्का हो ही जाएगा।दोनों परिवार एक दूसरे से मिल भी चुके थे और तुम्हारी उस लड़के से दो बार बात भी हो चुकी थी।यहाँ तक कि तुम्हारे पापा ने उन लोगों को लंच पर भी बुलाया था।तब क्या बात हुई कि बात आगे नहीं बढ़ी और बिना कोई कारण बताए दोनों तरफ से मनाही हो गई!”

“अरे क्या बताऊं! शायद गलती मुझसे ही हुई।ज्यादा परखने के चक्कर में मैंने ही सोचा कि लड़के का पास्ट भी पता कर लेना चाहिए और मैंने कुछ इस तरह से पूछ लिया जिसमें उससे यह कहकर कबूलवाना चाहा कि देखिए मेरा कॉलेज के दिनोंं में सहपाठी से ही प्रेम हो गया था लेकिन उसकी नौकरी लगी और माँ-बाप की मर्जी से उसने दूसरी जगह शादी कर ली।जिससे मेरा उसका रिश्ता समाप्त हो गया।यदि हमारी शादी होती है तो उसके बारे में सोचूंगी भी नहीं।क्या आपके भी कोई सम्बन्ध हैं या पहले थे!तब उसने जवाब दिया कि हाँ पहले थे लेकिन अब नहीं है।और हाँ उसने यह भी कहा कि चूंकि वह बिजनेस करता है तो कभी कभार पार्टी में ड्रिंक्स ले लेता है,इससे कोई दिक्कत तो नहीं होगी। तब तो हमने कोई जवाब एक दूसरे को नहीं दिया लेकिन इन्हीं बातों पर हमने सोचा कि यह रिश्ता जोड़ना ठीक नहीं होगा।मेरी ओर से गलती यही हुई कि मैंने लड़के के चालचलन को जानने के लिए अपनी झूठी बात कही लेकिन वह लड़का तो चरित्र के मामले में ऐसा निकला।”

“लेकिन यह भी तो हो सकता है कि लड़का भी तुम्हें परखने के लिए झूठ बोल रहा हो।”सुनयना ने कहा तो सुलेखा कुछ बोल न सकी।शायद इसके पीछे कहीं पछतावे का भाव छुपा हुआ था।

*डॉ. प्रदीप उपाध्याय

जन्म दिनांक-21:07:1957 जन्म स्थान-झाबुआ,म.प्र. संप्रति-म.प्र.वित्त सेवा में अतिरिक्त संचालक तथा उपसचिव,वित्त विभाग,म.प्र.शासन में रहकर विगत वर्ष स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ग्रहण की। वर्ष 1975 से सतत रूप से विविध विधाओं में लेखन। वर्तमान में मुख्य रुप से व्यंग्य विधा तथा सामाजिक, राजनीतिक विषयों पर लेखन कार्य। देश के प्रमुख समाचार पत्र-पत्रिकाओं में सतत रूप से प्रकाशन। वर्ष 2009 में एक व्यंग्य संकलन ”मौसमी भावनाऐं” प्रकाशित तथा दूसरा प्रकाशनाधीन।वर्ष 2011-2012 में कला मन्दिर, भोपाल द्वारा गद्य लेखन के क्षेत्र में पवैया सम्मान से सम्मानित। पता- 16, अम्बिका भवन, बाबुजी की कोठी, उपाध्याय नगर, मेंढ़की रोड़, देवास,म.प्र. मो 9425030009