लघुकथा

श्राद्ध

छोटे तू तो बड़ा ही खुश दिखाई दे रहा है और तेरे चेहरे पर पूर्ण संतुष्टि और तृप्ति का भाव दिखाई दे रहा है।

हाँ दादा,आप सही कह रहे हैं।अभी श्राद्धपक्ष में जब हमें अपनी संतानों ने आह्वान कर पितृलोक से बुलाया तो मेरी खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा लेकिन दादा आप क्यों परेशान दिखाई दे रहे हैं।

क्या बताऊँ, कहने को तीन बेटे हैं परन्तु तीनों की अलग अलग खींचतान चल रही है।मेरे जीतेजी जमीन-जायदाद के बंटवारे के लिए झगड़ते रहे और जब वसीयत कर अपने हिसाब से बंटवारा कर दिया तो तीनों भाई एक दूसरे का चेहरा भी नहीं देखते।छोटा अमन तो पहले भी किसी की परवाह नहीं करता था , उसे तो कोई मतलब ही नहीं है। हाँ सुनील और पवन जमाने को दिखाने के लिए अलग अलग मेरा श्राद्ध कर रहे हैं।अब मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कि किसके घर जाऊँ।ज्यादा अच्छा तो यही है कि बिना कुछ ग्रहण किये पितृलोक को लौट जाऊँ।

अरे दादा, आप परेशान मत हों।आप तो मेरे साथ चलो।आखिर हम हैं तो एक ही कुटुम्ब के।मैं तो अपने बेटों के बीच सम्पत्ति का बंटवारा भी नहीं कर पाया था।मुझे वसीयत करने का भगवान ने मौका भी नहीं दिया लेकिन बेटे समझदार हैं और सम्पत्ति का बंटवारा भी आपसी समझ से कर लिया। अब वे मिलकर ही श्राद्ध कर रहे हैं।चलो वहीं भरपेट ग्रहण करेंगे।

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*डॉ. प्रदीप उपाध्याय

जन्म दिनांक-21:07:1957 जन्म स्थान-झाबुआ,म.प्र. संप्रति-म.प्र.वित्त सेवा में अतिरिक्त संचालक तथा उपसचिव,वित्त विभाग,म.प्र.शासन में रहकर विगत वर्ष स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ग्रहण की। वर्ष 1975 से सतत रूप से विविध विधाओं में लेखन। वर्तमान में मुख्य रुप से व्यंग्य विधा तथा सामाजिक, राजनीतिक विषयों पर लेखन कार्य। देश के प्रमुख समाचार पत्र-पत्रिकाओं में सतत रूप से प्रकाशन। वर्ष 2009 में एक व्यंग्य संकलन ”मौसमी भावनाऐं” प्रकाशित तथा दूसरा प्रकाशनाधीन।वर्ष 2011-2012 में कला मन्दिर, भोपाल द्वारा गद्य लेखन के क्षेत्र में पवैया सम्मान से सम्मानित। पता- 16, अम्बिका भवन, बाबुजी की कोठी, उपाध्याय नगर, मेंढ़की रोड़, देवास,म.प्र. मो 9425030009