गीतिका/ग़ज़ल

झूठा नकाब

रूख पे पड़ा है जो तेरे हया का झूठा नकाब हटा दे
सुना है तुझे गणित बहुत आती है रिश्तों के दरमियाँ
थोड़ा प्यार बढ़ा दे और नफरत थोड़ी सी आज घटा दे
ना मेरा फायदा ना तेरा नुकसान होगा इस जमाने मे
मेरे इस दिल पर तेरा ये अहसान होगा इस जमाने में
सुना है तू रटता है बहुत मोहब्बत के कशीदे जमाने में
कोई एक लाइन मोहब्बत की आकर मुझे भी रटा दे
वेवफाई के चिलमन से ताक झांक मत तू इधर ऊधर
आ खुल के सामने आ मुझे भी तेरी तरह बेवफा बना दे
खोज रहा हूँ कबसे इस नाफरमान मोहब्बत का एक हिस्सेदार
आ तू आकर मेरी मोहब्बत में हिस्सा बटा दे
बैठी है मोहब्बत बीच बाजार अपनी बोली लगाये
आकर आज  इसे अपने  ख्वाहिशों के महल में बैठा दे
बेपर्दगी से तुझे कैसी शरम सच से झूठ का पर्दा हटा दे
तेरे छोड़े हर खाली स्थान को मैने मैं से भरा है कबसे
अये बेवफाआकर तू मुझमें से मेरे मैं को आज हटा दे
सुना है तू लूट लेता है जमाना बनकर सब की खुशिया
अये वक्त आज मुझपर अपनी थोडी मेहरबानी लुटा दे
सुना है तू मोहब्बत की तकदीर का नक्शा बनाता है
तो मेरी तकदीर से आज तू  लफ्ज ऐ मोहब्बत मिटा दे
काटे नहीं कटते ये बेवफाई के दिन रैन आज आकर तू
मेरे जिंदगी से मेरी  सांसो का ये दर्द नाक हिस्सा घटा दे
आरती त्रिपाठी 

आरती त्रिपाठी

जिला सीधी मध्यप्रदेश