लघुकथा

जुर्माना

दिल्ली में द्वारका चौराहे पर तैनात सिपाही विजय सरकार द्वारा लागू जुर्माने की नई राशि वाले प्रावधान को लेकर काफी उत्साहित था कि अभी अभी एक विभागीय आदेश पाकर उसका चेहरा लटक गया । उसके साथ ही चौराहे पर तैनात सिपाही अजय उसकी उदासी की वजह समझ नहीं पा रहा था । तभी उसने देखा विजय ने बिना हेलमेट पहने एक स्कूटर सवार को रुकने का इशारा किया , लेकिन वह स्कूटर सवार उसके नजदीक रुकने का नाटक करते हुए तेजी से स्कूटर भगा ले गया । विजय ने उस स्कूटर का नंबर नोट करना चाहा , लेकिन यह क्या ? नंबर प्लेट पर कोई नंबर ही नहीं था । नई गाड़ी लग रही थी जिसका अभी नंबर नहीं डाला गया रहा हो शायद । अजय यह देखकर समीप ही खड़ी अपनी मोटर साईकल की तरफ लपका लेकिन विजय ने उसे रोकते हुए कहा ,” रहने दे अजय यार ! अब ऐसा ही होगा । हम कुछ नहीं कर सकते ! “
” क्यों ? ऐसा क्या हो गया है कि हम कुछ नहीं कर सकते ? ” अजय ने हैरानी जताई थी ।
” तुझे शायद पता नहीं ! अभी अभी खबर आई है कि सड़क पर हमने यानी किसी पुलिसकर्मी ने वर्दी में परिवहन का कोई नियम तोड़ा तो उसे सामान्य से दुगुना जुर्माना भरना पड़ेगा । अब तू ही बता , ऐसी स्थिति में जब कोई अपराधी भाग रहा हो तो उसका पीछा करने से पहले हम खुद को नियमों के मुताबिक तैयार करें , हेलमेट पहनें तब तक वह अपराधी क्या हमारा इंतजार करेगा ? फिर हमें क्या जरूरत यह दुगुने चालान भरने का जोखिम उठाने की ? ” विजय ने उसे समझाया !

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।