मुक्तक/दोहा

कुछ मुक्तक

:1:
सुना है रोशनी के घर अंधेरों  ने बसाये हैं,
सुना है चांद  तारे चांदनी से बौखलाए हैं,
मुझे तुमसे मुहब्बत है यह मेरी हक़ीक़त है-
हमारी आंख के आंसू तेरे गम में  नहाये हैं ।।
:2:
प्रीत का स्वप्न सजाना तो सरल होता है,
गीत  से दिल को लुभाना  तो सरल होता है,
मुग्ध मुसकान लुटानी ही कठिन  है प्रिये-
अश्रु का कोष लुटाना  तो सरल होता है।।
:3:
रेत के ढेर पर जीवन  को सजाऊं कैसे,
खेत जो उजड़े हैं  फसलों  को  उगाऊं कैसे,
आंख से गिर रहे रिश्तों को संभाला मैंने-
दिल से उतरे हुए  रिश्तों को  निभाऊं कैसे।।
:   4:
जिन्दगी में  गम बहुत हैं  मुस्कुराना सीखिए,
हमकदम तब ही मिलेंगे  साथ चलना सीखिए,
क्यों  कुचलते हो गिरे हुए  पेड़ों के पत्ते-
छांव चाहते हो अगर तो स्वयं जलना सीखिए।।
:5:
रेत के घरोंदे में खिड़कियाँ नहीं होतीं,
आपसी संबंधों में चिपकियां नहीं होतीं,
अपनों  की क्या कहिए  ग़ैरों की सुनिए-
उन्हें  याद करने को हिचकियां नहीं होतीं ।।

— अशोक जैन

अशोक जैन

गुरुग्राम Email- ashok.jain908@gmail.com