मुक्तक/दोहा

हमीद के दोहे

आत्म प्रसंशा  से  नहीं, बनती  है  पहचान।
सब करते तारीफ जब,तब मिलता सम्मान।
पुख्ता  होती  है तभी,‌ रिश्तों  की  बुनियाद।
प्यार मुहब्बत की अगर,उसमें  डालो खाद।
चेला अब मिलता नहीं, मिलते सब उस्ताद।
चाहत हो  जब ज्ञान की , करते गूगल याद।
जीने  वाले  जी  गये , जीवन  अपना  यार।
जीवन  पर तो  मौत की, हरदम है यलगार।
शौहर अच्छा कम लगे, लगता अच्छा और।
शर्म  हया  सारी   गयी , कैसा  आया  दौर।
दूरी  असली  काम से, विज्ञापन  पर  जोर।
खाली  बर्तन  की तरह, खूब  मचाते  शोर।
हमीद कानपुरी

*हमीद कानपुरी

पूरा नाम - अब्दुल हमीद इदरीसी वरिष्ठ प्रबन्धक, सेवानिवृत पंजाब नेशनल बैंक 179, मीरपुर. कैण्ट,कानपुर - 208004 ईमेल - ahidrisi1005@gmail.com मो. 9795772415