लघुकथा

रूम नंबर-13

रूम नंबर-13

वाह! दिल्ली आए और रंगीला होटल में न जाएं तो क्या खाक दिल्ली आए?
क्या मैनेजर साहब क्या हाल है? और वो अपनी रूम नंबर 13 वाली शबनम कैसी है?

सब अच्छा है सर! लेकिन आज आपका कमरा किसी और ने पहले ही बुक कर लिया है।

कोई बात नही आप दूसरा कमरा देदो पर सर्विस शबनम से ही करा दो आखिर हम आपके पुराने कस्टमर हैं।
सर आप सही कह रहे हैं पर सॉरी ऐसा नही हो पाएगा।

अरे शबनम के लिए डबल पैसे दे दूँगा।
सर वो बात नही है। सभी कस्टमर हमारे लिए इम्पोर्टेन्ट हैं। आप उन्हीं से बात कर लीजिए शायद वो मान जाएं।
अच्छा! किसने बुक किया मैं उसी से बात कर लेता हूँ।
सर वो नीली शर्ट वाले सर, जो फोन पर बात कर रहे हैं।

हेल्लो सर! देखिये सर आप कोई दूसरा कमरा बुक कर लीजिए, उसके पैसे भी मैं……
पापा!!!!…….

सौरभ दीक्षित मानस

नाम:- सौरभ दीक्षित पिता:-श्री धर्मपाल दीक्षित माता:-श्रीमती शशी दीक्षित पत्नि:-अंकिता दीक्षित शिक्षा:-बीटेक (सिविल), एमबीए, बीए (हिन्दी, अर्थशास्त्र) पेशा:-प्राइवेट संस्था में कार्यरत स्थान:-भवन सं. 106, जे ब्लाक, गुजैनी कानपुर नगर-208022 (9760253965) dixit19785@gmail.com जीवन का उद्देश्य:-साहित्य एवं समाज हित में कार्य। शौक:-संगीत सुनना, पढ़ना, खाना बनाना, लेखन एवं घूमना लेखन की भाषा:-बुन्देलखण्डी, हिन्दी एवं अंगे्रजी लेखन की विधाएँ:-मुक्तछंद, गीत, गजल, दोहा, लघुकथा, कहानी, संस्मरण, उपन्यास। संपादन:-“सप्तसमिधा“ (साझा काव्य संकलन) छपी हुई रचनाएँ:-विभिन्न पत्र- पत्रिकाओं में कविताऐ, लेख, कहानियां, संस्मरण आदि प्रकाशित। प्रेस में प्रकाशनार्थ एक उपन्यास:-घाट-84, रिश्तों का पोस्टमार्टम, “काव्यसुगन्ध” काव्य संग्रह,