धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

सच्चाई और धर्म का प्रतीक नवरात्रि

भारतीय परंपराओं एवं शास्त्रों के अनुसार नवरात्र प्रतिवर्ष दो बार आते हैं ।चैत्र माह में आने वाली नवरात्रि को  बासंतिक  नवरात्रि कहते हैं, जबकि अश्विन मास के शुक्ल प्रतिपदा तिथि से शारदीय नवरात्र शुरू होते हैं ।9 दिनों तक चलने वाले शारदीय नवरात्रों में दुखों को दूर करने वाले जगत जननी आदि शक्ति दुर्गा देवी की उपासना की जाती है और दसवे दिन बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक दशहरा मनाया जाता है। इस बार नवरात्रि 29 सितंबर से शुरू होकर 7 अक्टूबर तक है। देशभर में 9 दिनों तक मां दुर्गा के अलग अलग रूपों की विशेष पूजा अर्चना की जाती है। भक्त पूरे 9 दिनों तक व्रत रखकर मां की पूजा करते हैं । इन 9 दिनों में प्रत्येक शहर और कस्बे में रामलीला का मंचन भी किया जाता है ! भारत में विशेष रूप से पश्चिम बंगाल में नवरात्रि पर्व की षष्ठी से लेकर नवमी 4 दिन तक दुर्गा उत्सव मनाया जाता है।
इस पर्व में गुजरात और महाराष्ट्र में डांडिया और गरबा डांस की धूम विशेष देखने को मिलती है। तमिलनाडु की परंपरा के अनुसार देवी मां के चरणों की निशान और प्रतिमा की झांकी को घरों में स्थापित किया जाता है ।शारदीय नवरात्र में देवी मां के नौ स्वरूपों आराधना की जाती है ,क्रमशः शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा , स्कंदमाता ,कात्यायनी, कालरात्रि महागौरी और सिद्धिदात्री। प्राचीन भारतीय मान्यताओं के अनुसार नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ रूपों की उपासना करने से जीवन में  ऋद्धि-सिद्धि, सुख-शांति, मान सम्मान, यश और  मनोवांछित कामनाओं की प्राप्ति शीघ्र ही होती है। भारतीय हिंदू धर्म में दुर्गा देवी आदि शक्ति के रूप में प्रतिष्ठित हैं और देवी मां अति शीघ्र फल दिन प्रदान करने वाली देवी के रूप में सुप्रसिद्ध है । देवी भागवत पुराण के अनुसार आश्विन मास में मां की पूजा अर्चना करने पर मनुष्य संपूर्ण वर्ष देवी मां की कृपा का पात्र बना रहता है और मनुष्य का कल्याण होता है ।
इस पर्व से  जुड़ी एक लोक प्रसिद्ध कथा है कि देवी मां ने एक भैसे रूपी  दानव अर्थात महिषासुर का वध किया था। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार  महिषासुर ने अपनी भक्ति से देवताओं को प्रसन्न कर अजय होने का वरदान मांग लिया था, इसके कारण महिषासुर ने अपनी शक्ति का प्रयोग करते हुए सूर्य ,  इंद्र,अग्नि, वायु ,चंद्रमा ,यम ,वरुण अन्य देवताओं के सभी अधिकार छीन लिए और स्वयं स्वर्ग लोक का अधिकारी बन बैठा। दानव महिषासुर के इस दुस्साहस से क्रोधित होकर सभी देवताओं ने मिलकर आदि शक्ति उत्पन्न की,उस दानव का वध करने के लिए सभी देवताओं ने अपने अपने अस्त्र देवी दुर्गा को दिए थे और देवताओं के सम्मिलित प्रयास से देवी मां अति बलवान हो  गई और फिर 9 दिनों तक देवी और महिषासुर संग्राम हुआ और अंततः महिषासुर वध कर देवी दुर्गा महिषासुर मर्दिनी कहलाई । यह पर्व बताता है कि झूठ कितना भी बड़ा और आप कितना भी शक्तिशाली क्यों ना हो आखिर में जीत सच्चाई और धर्म की ही होती है ।
आज 21वीं शताब्दी के  उत्तर आधुनिक और भूमंडलीकरण के युग में मानव जीवनको बेशक सुविधापूर्ण बना दिया है ,पर इस चकाचौंध की दुनिया ने कई महिषासुर उत्पन्न कर दिए हैं और अस्मिता लूटना  उनका एक धंधा बन गया है। अगर हम चाहते हैं कि ऐसे महिषासुराओं क वध किया जा सके तो इसकी शुरुआत  अपने हमें अपनी घर से ही करनी होगी हमें अपनी सुंकचित सोच को त्यागना होगा और अपने समाज की नारी शक्ति में यह भावना जागृत करनी होगी कि उनके भीतर एक दुर्गा, एक काली एक महाकाली, एक भद्रकाली ,एक श्मशान काली समाई है जो हर बुराई बुरी सोच रखने वाले दानव का मुकाबला कर सकती है तभी हम अपनी संस्कृत  धरोहरों में दर्ज दुर्गा मां की लोक कथाओं के महत्व को समझ सकेंगे। बेशक युग बदलते रहे हैं पर नारी शक्ति आज भी उतनी ही सशक्त और शक्तिशाली है ।।
— अमित डोगरा

अमित डोगरा

पी एच.डी (शोधार्थी), गुरु नानक देव विश्वविद्यालय अमृतसर। M-9878266885 Email- amitdogra1@gmail.com