कविता

दो आँखे

वो एक जोड़ी दो आँखे,
तकती रहती दरवाजे को,
हर एक आहट पर वो ,
उठ जाती उधर दरवाजे पर,
लेकिन हर बार होती निराशा,
जब देखती मुझे दरवाजे पर,
खुशी से चुपके चुपके वो ,
बहती होले से नज़र चुरा सभी की,
खुशी झलकती शब्दो में,
आँखों से बहता पानी खुशी का ,
मेरे इर्द गिर्द घूमती रहती ,
वो एक जोड़ी आँखे उसकी,
आँखों ही आँखों मे बहुत कुछ ,
बातें हर रोज़ हो जाती ,
जब लौटने के दिन आते नज़दीक,
वो एक जोड़ी आँखे ही सबसे पहले,
नज़र से नज़र चुराती हरदम,
आँखों मे रहता पानी हरदम,
बोलती हँस कर झूठ जबान पर,
दिल का हाल उसका बताती आँखे,
वो बहुत कुछ कहना चाहती पर,
नज़र से नज़र मिलने से डरती है ,
मेरे ओझल होने तक देखती रहती,
उन आँखों मे बहुत कुछ है छिपा ,
हरदम राह मेरी तकती रहती,
एक जोड़ी दो आँखे उसकी ।।

सारिका औदिच्य

*डॉ. सारिका रावल औदिच्य

पिता का नाम ---- विनोद कुमार रावल जन्म स्थान --- उदयपुर राजस्थान शिक्षा----- 1 M. A. समाजशास्त्र 2 मास्टर डिप्लोमा कोर्स आर्किटेक्चर और इंटेरीर डिजाइन। 3 डिप्लोमा वास्तु शास्त्र 4 वाचस्पति वास्तु शास्त्र में चल रही है। 5 लेखन मेरा शोकियाँ है कभी लिखती हूँ कभी नहीं । बहुत सी पत्रिका, पेपर , किताब में कहानी कविता को जगह मिल गई है ।