विज्ञान

ब्रह्माण्ड में पृथ्वी की उत्पत्ति

(महाविस्फोट प्रतिरूप के अनुसार, यह ब्रहमाण्ड अति सघन और ऊष्म अवस्था से विस्तृत हुआ है और अब तक इसका विस्तार चालू है। एक सामान्य धारणा के अनुसार अंतरिक्ष स्वयं भी अपनी आकाशगंगओं सहित विस्तृत होता जा रहा है। ऊपर दर्शित चित्र ब्रहमाण्ड के एक सपाट भाग के विस्तार का कलात्मक दृश्य है।)
ब्रहमांड, जिसका पृथ्वी एक भाग है, का जन्म एक महाविस्फोट के परिणाम स्वरूप हुआ। इसी को महाविस्फोट सिद्धान्त या बिग बैंग सिद्धान्त कहते हैं। इसी सिद्धान्त के अनुसार लगभग बारह से चौदह अरब वर्ष पूर्व संपूर्ण ब्रहमांड एक परमाणुविक इकाई के रूप में था। उस समय रहित या कालातीत स्थानऔर स्थान जैसी कोई वस्तु अस्तित्व में नहीं थी। महाविस्फोट प्रतिरूप के अनुसार लगभग १३.७ अरब वर्ष पूर्व इस धमाके में अत्यधिक ऊर्जा का उत्सर्जन हुआ। यह ऊर्जा इतनी अधिक थी जिसके प्रभाव से आज तक ब्रहमांड फैलता ही जा रहा है। सारी भौतिक मान्यताएं इस एक ही घटना से परिभाषित होती हैं जिसे महाविस्फोट सिद्धांत कहा जाता है। महाविस्फोट नामक इस महाविस्फोट के धमाके के मात्र १.४३ सेकेंड अंतराल के बाद समय, अंतरिक्ष की वर्तमान मान्यताएं अस्तित्व में आ चुकी थीं । भौतिकी के नियम लागू होने लग गये थे। १.३४वें सेकेंड में ब्रम्हांड 1030 गुणा फैल चुका था और क्वार्क, लैप्टान और फोटोन का गरम द्रव्य बन चुका था। १.४ सेकेंड पर क्वार्क मिलकर प्रोटॉन और न्यूट्रॉन बनाने लगे और ब्रम्हांड अब कुछ ठांडा हो चुका था। हाइड्रोजन, हीलियम आदि के अस्तित्व का आरांभ होने लगा था और अन्य भौतिक तत्व बनने लगे थे।
बीसंवीं सदी के वैज्ञानिकों के ताजा अनुमान के अनुसार ब्रह्माण्ड 93 अरब प्रकाश वर्ष (एक वर्ष में प्रकाश जितनी दूर गमन करता है वह दूरी प्रकाश वर्ष कहलाती है) बड़ा है और यह तेजी से फैलता जा रहा है। इतने बड़े ब्रह्माण्ड में हमारी धरती कुछ वैसी ही है जैसे प्रशांत महासागर में पानी की एक बूंद।
पृथ्वीची उत्पत्ती Earth’s origin
पृथ्वी जिस सौर मण्डल का ग्रह है उसका निर्माण अंतरतारकीय अंतर धूल तथा गैस, जिसे सौर निहारिका कहा जाता है, के एक घूमते हुए बादल से हुआ, जो कि आकाशगांगा के केंद्र का चक्कर लगा रहा था। यह सौर मण्डल बिग बैंग 13.7 Ga के कुछ ही समय बाद निर्मित हाइड्रोजन व हीलियम तथा अभिनव (बहुत युवा) तारों द्वारा उत्सरजित भारी तत्वों से मिलकर बना था। लगभग 4.6 Ga में, संभवत किसी निकटस्थ अभिनव तारे की आक्रामक लहर के कारण सौर निहारिका के सिकुड़ने की शुरुआत हुई थी। संभव है कि इस तरह की किसी आक्रामक तरंग के कारण ही निहारिका के घूमने व कोणीय आवेग प्राप्त करने की शुरुआत हुई हो. धीरे-धीरे जब बादल इसकी घूर्णन-गति को बढाता गया, तो गुरुत्वाकर्षण तथा निष्क्रियता के कारण यह एक सूक्ष्म-ग्रहीय चकरी के आकार में रूपांतरित हो गया, जो कि इसके घूर्णन के अक्ष के लंबवत थी। इसका अधिकांश भार इसके केंद्र में एकत्रित हो गया और गर्म होने लगा, लेकिन अन्य बड़े अवशेष शेर के कोणीय आवेग तथा टकराव के कारण सूक्ष्म व्यतिक्रमों का निर्माण हुआ।
पदाथों के गिरने, घूर्णन की गति में वृद्धि तथा गुरुत्वाकर्षण के दबाव ने केंद्र में अत्याधिक गतिज ऊर्जा का निर्माण किया। किसी अन्य प्रक्रिया के माध्यम से एक ऐसी गति, जो कि इस निर्माण को मुक्त कर पाने में सक्षम हो, पर उस ऊर्जा को किसी अन्य स्थान पर स्थानातंरित कर पाने में इसकी अक्षमता के परिणामस्वरूप चकरी का केंद्र गरम होने लगा और अन्ततः हीलियम में हाइड्रोजन के नाभिकीय गलन की शुरुआत हुई और अन्ततः, संकुचन के बाद एक टी टौरी तारे (T Tauri Star) के जलने से सूरज का निर्माण हुआ। इसी बीच, गुरुत्वाकर्षण के कारण जब पदार्थ नये सूर्य की गुरुत्वाकर्षण सीमाओं के बाहर पूर्व में बाधित वस्तुओं के चारों ओर घनीभूत होने लगा, तो धूल के कण और शेष सूक्ष्म-ग्रहीय चकरी छल्लों में पृथक होना शुरु हो गई।समय के साथ-साथ बड़े खण्ड एक-दूसरे से टकराये और बड़े पदाथों का निर्माण हुआ, जो अन्ततः सूक्ष्म-ग्रह बन गये। इसमें केंद्र से लगभग 150 मिलियन किलोमीटर की दूरी पर स्थित था :पृथ्वी: ग्रह. इस ग्रह की रचना (1% अनिश्चितता की सीमा के भीतर) लगभग 4.54 बिलियन वर्ष पूर्व हुई और इसका अधिकांश भाग 10-20 मिलियन वर्षों के भीतर पूरा हुआ। समय के साथ, बड़े हिस्से एक दूसरे से टकराते गए और बड़े पदार्थ बनते गए, जो अंततः सूक्ष्म होते गए। समय के साथ, बड़े हिस्से एक दूसरे से टकराते गए और बड़े पदार्थ बनते गए, जो अंततः सूक्ष्म होते गए। वे बीच के आसपास हैं। पदाथों के गिरने, घूर्णन की गति में वृद्धि तथा गुरुत्वाकर्षण के दबाव ने केंद्र में अत्याधिक गतिज ऊर्जा का निर्माण किया। किसी अन्य प्रक्रिया के माध्यम से एक ऐसी गति, जो कि इस निर्माण को मुक्त कर पाने में सक्षम हो, पर उस ऊर्जा को किसी अन्य स्थान पर स्थानातंरित कर पाने में इसकी अक्षमता के परिणामस्वरूप चकरी का केंद्र गरम होने लगा और अन्ततः हीलियम में हाइड्रोजन के नाभिकीय गलन की शुरुआत हुई और अन्ततः, संकुचन के बाद एक टी टौरी तारे (T Tauri Star) के जलने से सूरज का निर्माण हुआ। इसी बीच, गुरुत्वाकर्षण के कारण जब पदार्थ नये सूर्य की गुरुत्वाकर्षण सीमाओं के बाहर पूर्व में बाधित वस्तुओं के चारों ओर घनीभूत होने लगा, तो धूल के कण और शेष सूक्ष्म-ग्रहीय चकरी छल्लों में पृथक होना शुरु हो गई।समय के साथ-साथ बड़े खण्ड एक-दूसरे से टकराये और बड़े पदाथों का निर्माण हुआ, जो अन्ततः सूक्ष्म-ग्रह बन गये। इसमें केंद्र से लगभग 150 मिलियन किलोमीटर की दूरी पर स्थित था :पृथ्वी: ग्रह. इस ग्रह की रचना (1% अनिश्चितता की सीमा के भीतर) लगभग 4.54 बिलियन वर्ष पूर्व हुई और इसका अधिकांश भाग 10-20 मिलियन वर्षों के भीतर पूरा हुआ। समय के साथ, बड़े हिस्से एक दूसरे से टकराते गए और बड़े पदार्थ बनते गए, जो अंततः सूक्ष्म होते गए। समय के साथ, बड़े हिस्से एक दूसरे से टकराते गए और बड़े पदार्थ बनते गए, जो अंततः सूक्ष्म होते गए। वे बीच के आसपास हैं।
रेडियोमीट्रिक समयांकन (Radiometric डेटिंग-अपने रेडियोधर्मी अर्थात विकिरण उत्तेजित तत्वों के क्षय से चट्टानों की आयु निरधारण करने की प्रक्रिया) की विधि द्वारा खोजे गये वैज्ञानिक प्रमाण संकेत देते हैं कि पृथ्वी की आयु ४.५४ अरब वर्ष (4.54 billion years) पहले। इस प्रकार पृथ्वी के इतिहास के प्रथम युग की शुरुआत लगभग 4.54 बिलियन (अरब) (4.54 Ga) वर्ष पूर्व सौर-निहारिका के संचयन द्वारा उसके (पृथ्वी के) निर्माण के साथ साथ हुई।
नीहारिका या नॅब्युला अंतर्तारकी माध्यम (इन्टरस्टॅलर स्पेस) में स्थित ऐसे अंतर्तारकी; बादल को कहते हैं जिसमें धूल, गैस, हीलियम गैस और अन्य आयनीकृत (आयोनाइज़्ड) प्लाज्मा गैसें मौजूद हों। पुराने ज़माने में खगोल में दिखने वाली किसी भी विस्तृत वस्तु को“नीहारिका“ कहते थे। आकाशगंगा (हमार गैलेक्सी) से परे किसी भी गैलेक्सी को नीहारिका ही कहा जाता था। बाद में जब एडविन हबल के अनुसन्धान से यह ज्ञात हुआ कि यह गैलेक्सियाँ हैं, तो नाम बदल दिए गए। उदाहरण के लिए एंड्रोमेडा गैलेक्सी को पहले एण्ड्रोमेडा नॅब्युला या नीहारिका के नाम से जाना जाता था। नीहारिकाओं में अक्सर तारे और ग्रहीय मण्डल जन्म लेते हैं।
पृथ्वी के इस पहले युग को हेडियन युग के नाम से जाना जाता है। यह आर्कियन युग तक जारी रहा है, जिसकी शुरुआत दुनिया में 3.8 साल पहले हुई, पृथ्वी पर आज तक मिली सबसे पुरानी चट्टान की आयु 4.0 Ga मापी गई है, और कुछ चट्टानों में प्राचीनतम डेट्राइटल ज़रकान कणों की आयु लगभग 4.4 Ga आांकी गई है, जो कि पृथ्वी की सतह और स्वयं पृथ्वी की रचना के आस-पास का काल-खण्ड है। चूंकि उस काल की बहुत अधक सामग्री सुरक्षित नहीं रखी गई है, अत: हेडियन (Hadean) काल के बारे में बहुत कम जानकारी प्राप्त है, लेकिन वैज्ञानिकों का अनुमान है कि लगभग 4.53 Ga में प्रारंभ सतह के निर्माण के शीघ्र बाद एक अधिक पुरातन ग्रह का पुरातन पृथ्वी पर प्रभाव पड़ा, जिसने इसके आवरण व सतह के एक भाग को अंतरिक्ष में उछाल दिया और चंद्रमा का जन्म हुआ। ।
हेडियन (Hadean) युग के दौरान, पृथ्वी की सतह पर लगातार उल्कापात होता रहा और बड़ी मात्रा में ऊष्मा के प्रवाह तथा भू-ऊष्मीय अनुपात (geothermal gradient) के कारण ज्वालामुखीयों का विस्फोट भी भयांकर रहा होगा. डेट्राइटल ज़रकान कण, जिसकी आयु 4.4 Ga आांकी गई है, इस बात का प्रमाण प्रस्तुत करते हैं कि द्रव जल के साथ उनका संपर्क हुआ था, जिसे इस बात का प्रमाण माना जाता है कि उस समय इस ग्रह पर महासागर या समुद्र पहले से ही मौजूद थे। अन्य आकाशीय पिण्डों पर प्राप्त ज्वालामुखी-विवरों की गणना के आधार पर यह अनुमान लगाया गया है कि उल्का- पिण्डों के अत्याधिक प्रभाव वला एक काल-खण्ड, जिसे “लेट हेवी बॉम्बाडिमेन्ट (Late Heavy Bombardment)” अर्थात देर से भारी बमबारी कहा जाता है, का प्रारंभ लगभग 4.1 Ga में हुआ था और इसकी समाप्ति हेडियन के अंत के साथ 3.8 Ga के आस-पास हुई
विलंबित भार बमबार (चांद्र प्रलय के रूप में भी जानी जाती है) की घटना लगभग 3.8 से 4.8 अरब वर्ष (Ga) पूर्व पृथ्वी पर हेडियन और आर्कियन युग के समय घटित होने की संभावना है। इस अंतराल में, क्षुद्रग्रहों की एक असमानुपाती बड़ी सांख्या बुध, शुक्र, पृथ्वी और मंगल सहित सौर परिवार के आंतरिक प्रारंभिक भू-ग्रहों के साथ टकरा गई। पृथ्वी के इतिहास के बहुत प्राथमिक काल में जब पृथ्वी और अन्य रॉकी ग्रहों का गठन हो गया एवं उनकी मात्राओं में वृद्धि हो गई तब विलंबित भारी बमबारी (LHB) हुई ।
आर्कीयन युग के प्रारांभ तक, पृथ्वी पर्याप्त रूप से ठांडी हो चुकी थी। आर्कीयन युग के वातावरण, जिसमें ऑक्सीजन तथा ओज़ोन परत मौजूद नहीं थी, की रचना के कारण वर्तमान जीव-जंतु में से अधिकाश का अस्तित्व असंभव रहा होगा. इसके बावजूद, ऐसा माना जाता है कि आर्कीयन युग के प्रारंभिक काल में ही प्राथमिक जीवन की शुरुआत हो गई थी और कुछ संभावित जीवाष्म की आयु लगभग 3.5 Ga आंकी की गई है। हालाकि, कुछ शोधकर्ताओं का अनुमान है कि जीवन की शुरुआत शायद प्रारंभिक हेडियन काल के दौरान, लगभग 4.4 Ga पूर्व, हुई होगी और पृथ्वी की सतह के नीचे जलतापीय (hydrothermal) छिद्रों में रहने के कारण संभावित विलम्बित बमबारी काल में उनका अस्तित्व बच सका.
हाल के शोधकर्ताओं ने 27 अरब साल पहले पृथ्वी के वायुमंडल के बारे में आश्चर्यजनक रूप से खोज की है। उनके निष्कर्षों के अनुसार, उस समय प्राचीन पृथ्वी के ऊपरी वातावरण में ऑक्सीजन की मात्रा आज की तरह अधिक थी और मिथेन की परत ऑक्सीजन की कमी से ऑक्सीजन से भरी ऊपरी परत को अलग करती थी । इन वैज्ञानिकों ने अपने अत्यधिक सूक्ष्मदर्शियों के प्रयोग से पाया कि कि ज्यादातर माइक्रोमेटेराइट्स (अंतरिक्ष की घूल) कभी लोहे की धातु के कण रहे हैं। ये वायुमण्डल की ऊपरी सतह में आयरन ऑक्साइड धातु में बदल गए थे, जो कि ऑक्सीजन की भरपूर मौजूदगी से ही संभव है। इस शोध पर चिन्तन हो रहा है।

डॉ. विजय कुमार भार्गव

1956 में एम.एस.सी की उपाधि अर्जित कर डाॅ. विजय कुमार ने पाॅंच वर्ष अध्यापन कार्य करके सन् 1961 में बी.ए.आर.सी में प्रवेश किया। परमाणु ऊर्जा विभाग द्वारा अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेन्सी की छात्रवृति पर न्यूयाॅर्क विश्वविद्यालय भेजे गए। वहाॅं से सभी विषयों में ए ग्रेड लेकर एमई की उपाधि अर्जित कर 1970 में भारत लौटे। अमरीका प्रवास ने भार्गव की सोच को बदल दिया और राष्ट्र के संसाधनों से जुड़े शोध के लिए मौलिक चिंतन, देश के लगाव की दृष्टि से स्वभाषा का महत्व और अपना लक्ष्य स्पष्ट परिलक्षित होने लगा। धर्मपत्नी के सहयोग से परमाणु ऊर्जा ज्ञान को जन-जन तक पहुॅंचाने के लिए आपने हिन्दी भाषा में अनेक संगोष्ठियाॅं की, 40 बड़े-बड़े चार्ट बनाए और संगोष्ठियों में प्रदर्शित किए, शेाध ग्रंथ द्विभाषिक प्रस्तुत किया जिसके लिए परमाणु ऊर्जा के तत्कालीन अध्यक्ष डाॅ. चिदम्बरम द्वारा सम्मानित किए गए। सन् 1995 में अवकाश प्राप्त करने के बाद भारतीय भाषा प्रतिष्ठापन राष्ट्रीय परिषद की स्थापना की और हिन्दी के प्रचार-प्रसार में लगे रहे। सम्प्रति दृष्टि हीनों के लिए हिन्दी ब्रेल में प्रकाशित विज्ञान पत्रिका का सम्पादन किया। अब हिन्दी में वैज्ञानिक पुस्तकें लिख रहें हैं। ‘क्षः किरण एवं नाभिकीय विकिरण द्वारा चिकित्सा‘, ‘पुस्तक एटम की कहानी’, ‘पर्यावरण एवम् विकिरण‘ एवं ‘आध्यात्मिक चिंतन का वैज्ञानिक दृष्टिकोण’ लिख चुके हैं तथा अब ‘वेद और विज्ञान’ पर लिख रहे हैं।