कविता

फिर सदाबहार काव्यालय- 43

दो मृगछौने (कविता)

 

देख के दो सुंदर मृगछौने,
मन ने पूछा ये हैं कौन?
मन उत्तर-प्रतिउत्तर करता,
मृगछौने तो रहते मौन.

एक है अलख, अलेप, अनादि (अतींद्रिय),
नाम है उसका ब्रह्म महान,
एक लिप्त होता है जग में,
जीव है उसका नाम निदान.

नहीं नहीं, यह ठीक नहीं है,
ये तो हैं दिन-रात समान,
एक दिवस की किरणें लाता,
एक दिवस का है अवसान.

अथवा ये सुख-दुःख साक्षात हैं,
साथ-साथ हरदम रहते हैं,
दुःख के पीछे सुख आता है,
सुख में सम्मिलित दुःख रहते हैं.

शायद ये जीवन-मृत्यु हों,
कभी नहीं ये मिल पाएंगे,
तभी भिन्न दिशा में मुख है,
ऐसे ही ये रह जाएंगे.

ये हैं सिक्के के दो पहलू,
या कि नदी के हैं दो छोर,
अथवा दो ध्रुव भूमंडल के,
इनका कोई ओर न छोर.

कोई भी हों ये इससे क्या है,
सीख हमें लेनी है इनसे,
भिन्न दिशा में मुख हों तब ही,
वार्ता कर सकते हैं सुख से.

लीला तिवानी

 

मेरा संक्षिप्त परिचय 
मुझे बचपन से ही लेखन का शौक है. मैं राजकीय विद्यालय, दिल्ली से रिटायर्ड वरिष्ठ हिंदी अध्यापिका हूं. कविता, कहानी, लघुकथा, उपन्यास आदि लिखती रहती हूं. आजकल ब्लॉगिंग के काम में व्यस्त हूं, साथ ही पुस्तकें लिखने का काम भी जारी है.

मैं हिंदी-सिंधी-पंजाबी में गीत-कविता-भजन भी लिखती हूं. मेरी सिंधी कविता की दो पुस्तकें, एक पुस्तक भारत सरकार द्वारा और दूसरी दिल्ली राज्य सरकार द्वारा प्रकाशित हो चुकी हैं. कविता की एक पुस्तक ”अहसास जिंदा है” तथा भजनों की अनेक पुस्तकें और ई.पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है. इसके अतिरिक्त अन्य साहित्यिक मंचों से भी जुड़ी हुई हूं. मेरे दो शोधपत्र, एक शोधपत्र दिल्ली सरकार द्वारा और एक भारत सरकार द्वारा पुरस्कृत हो चुके हैं.

मेरे ब्लॉग की वेबसाइट है-
https://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/rasleela/

 

मेरी छात्रा जयश्री पिप्पिल ने 1984 में छोटा-सा चित्र दो मृगछौने बनाकर मुझे उपहार में दिया था, जिसे मैंने अपने कविता-संग्रह के कवर पर लगा रखा है. आज भी यह संग्रह मेरी स्टडी टेबिल पर सबसे ऊपर रखा है. यह कविता उसी चित्र पर आधारित है. जयश्री पिप्पिल को यह कविता बहुत पसंद आई थी. उसने ही मेरे कविता-संग्रह के खाकी पेपर के कवर पर अपनी वह गोल पेंटिंग अपने हाथों से चिपकाकर बटर पेपर का कवर चढ़ा दिया था, जो आज तक ज्यों-का-त्यों है. जयश्री पिप्पिल को कोटिशः धन्यवाद व शुभकामनाएं.

पुनश्च-
‘सेव एनर्जी’
‘सेव एनर्जी’ के कारण आज से ऑस्ट्रेलिया में समय में परिवर्तन हो गया है. यहां गर्मियां शुरु हो रही हैं. सूरज सुबह 6 बजे निकलकर रात आठ बजे तक रहने वाला है. अब तक ऑस्ट्रेलिया भारत से साढ़े चार घंटे आगे था, अब साढ़े पांच घंटे आगे हो गया है. यहां कल सार्वजनिक अवकाश रहेगा, ताकि लोग ने समय के आदि हो जाएं. ‘सेव एनर्जी’ शुरु होने का समय निश्चित है, अक्तूबर का प्रथम रविवार. रात को सभी मोबाइल, लैपटॉप, डिजिटल घड़ियों-गैजेट्स आदि में समय ऑटोमैटिकली परिवर्तित हो गया.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “फिर सदाबहार काव्यालय- 43

  • लीला तिवानी

    मेरी छात्रा जयश्री पिप्पिल बहुत ही प्रतिभाशाली छात्रा थी. वह चार साल मेरी छात्रा रही. इस दौरान अनेक प्रतियोगिताओं में उसने मेरी कविताओं को आवाज दी. उस समय मेरी कविता और जयश्री पिप्पिल की प्रस्तुति जीत का सूचक मानी जाती थी. अनेक प्रतियोगिताओं में उसकी कविता-प्रस्तुति को प्रथम पुरस्कार से नवाजा गया. अनेक प्रतियोगिताओं में प्रथम, द्वितीय, तृतीय और प्रोत्साहन चारों पुरस्कार हमारे विद्यालय को मिले. अगर कवि का नाम लेना आवश्यक होता था, तो हमारी चारों छात्राओं से मेरा नाम सुनकर मुझे भी मंच पर बुलाकर पुरस्कार दिया जाता था और गीत-कविता का पठन करने को कहा जाता था. अगला दिन प्रार्थना-सभा में जश्न का समय होता था. एक बार पुनः जयश्री पिप्पिल को कोटिशः धन्यवाद व शुभकामनाएं.

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