गीतिका/ग़ज़ल

मौन का शोर

अंतश  में  गूंजने लगा है , मौन का ये शोर।
होने  लगा  है  इसका , असर यूं चारो ओर।
पलकों  को  झपकने,नहीं देता ये रातों को,
आंखों में बस  गया है,बनके  घटा घनघोर।
मीलों से हो गये दिन ,सदियों के जैसी रात,
कभी दिनको तरसे नैना,कभी ढूंढते हैं भोर।
सूनी  पड़ी  है  धरती , चुपचाप आसमां है,
आंखों  का  है भरम या , थामे हुये हैं छोर।
खोया सा  लग रहा है , सागर का किनारा,
है  चांद  अधूरा  सा , लहरें भी हैं कमजोर।
धड़कन भी चल रही है ,चुपचाप इस तरह,
दिल बंध गया हो जैसे ,रिश्ते में बिना डोर।
पुष्पा “स्वाती”

*पुष्पा अवस्थी "स्वाती"

एम,ए ,( हिंदी) साहित्य रत्न मो० नं० 83560 72460 pushpa.awasthi211@gmail.com प्रकाशित पुस्तकें - भूली बिसरी यादें ( गजल गीत कविता संग्रह) तपती दोपहर के साए (गज़ल संग्रह) काव्य क्षेत्र में आपको वर्तमान अंकुर अखबार की, वर्तमान काव्य अंकुर ग्रुप द्वारा, केन्द्रीय संस्कृति मंत्री श्री के कर कमलों से काव्य रश्मि सम्मान से दिल्ली में नवाजा जा चुका है