इतिहास

स्वामी रामतीर्थ : एक भारतीय सन्यासी

भारतवर्ष में अक्टूबर माह में प्रख्यात समाजसेवी और आयरन लेडी के नाम से मशहूर एनी बेसेंट, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, लाल बहादुर शास्त्री, जयप्रकाश नारायण, डॉक्टर होमी जहांगीर भाभा, लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल, डॉ राम मनोहर लोहिया जैसी महान विभूतियों का जन्म हुआ है।इन्हीं में से एक थे विश्व स्तर पर ख्याति प्राप्त वेदांत दर्शन के अनुयायी भारतीय सन्यासी स्वामी रामतीर्थ।उनका जन्म सन् 1873 में पंजाब प्रांत के गुजरावालां में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था।वे पूर्ण बह्मज्ञानी,संतोषी ,त्याग मय और आडंबरहीन जीवन व्यतीत करने वाले उच्च कोटि के सन्यासी थे।अपने 33 वर्ष के अल्प आयु काल में ही उन्होंने ऐसी प्रसिद्धि प्राप्त कर ली जो युग युगांतर तक अक्षुण्ण रहेगी। वे एक ओजस्वी वक्ता श्रेष्ठ लेखक,महान समाज सुधारक और उच्च राष्ट्रवादी थे। जीवन के प्रारम्भ में उन्होंने सामान्य लोगों जैसा ही जीवन ही व्यतीत किया।इनके बचपन का नाम तीर्थ राम था।आर्थिक तंगी से जूझते हुए इन्होने सन् 1891 में बी ए की परीक्षा उत्तीर्ण की और 90 रुपए प्रति माह की छात्रवृत्ति भी प्राप्त की।गणित इनका प्रिय विषय था।अत: इसमें एम ए  की डिग्री प्राप्त कर,पंजाब कॉलेज में ही प्रोफेसर के तौर पर कार्य करने लगे।अपने वेतन का एक बड़ा हिस्सा वे निर्धन बच्चों की पढ़ाई के लिए दान दे देते थे।

 वह गणित के कठिन से कठिन प्रश्न चुटकियों में हल कर लिया करते थे। कहा जाता है कि एक बार किसी गणितज्ञ ने उन्हें गणित के 3 सवाल हल करने के लिए दिए जो वास्तव में अत्यंत कठिन थे। स्वामी रामतीर्थ  बहुत प्रयास करने के बाद भी उसका हल नहीं खोज पा रहे थे। उन्होंने प्रतिज्ञा की कि यदि सूर्योदय तक मैं इन प्रश्नों को हल नहीं कर पाऊंगा तो मैं अपने प्राण त्याग दूंगा। दो प्रश्नों के उत्तर तो उन्होंने खोज लिए लेकिन तीसरे का हल सूर्योदय तक भी नहीं निकाल सके। अतः कटार से उन्होंने अपना गला काटने का प्रयास किया तभी आसमान में उस प्रश्न का हल उन्हें लिखा हुआ दिखाई दिया ।उन्होंने उसे नोट किया और तीनों प्रश्नों के उत्तर लिख कर भेज दिए ।अगूढ़ प्रश्नों को हल करने के लिए जब उन्हें सम्मानित किया जा रहा था तो उन्होंने कहा कि पहले दो प्रश्नों के उत्तर खोजने का श्रेय तो मैं ले सकता हूं लेकिन तीसरे प्रश्न का उत्तर तो मुझे ईश्वर ने दिया है उसका श्रेय मैं कैसे ले सकता हूं? कॉलेज में अध्यापन कार्य के दौरान वे पंजाब के सनातन धर्म सभा से जुड़े थे और सत्संग में जाया करते थे। यही उनकी मुलाकात अमेरिका में विश्व धर्म सम्मेलन में प्रसिद्धि को प्राप्त कर चुके स्वामी विवेकानंद से हुई वह स्वामी जी के सानिध्य से उनके विचारों से इतने अधिक प्रभावित हुए कि उन्होंने सन्यास लेने की इच्छा व्यक्त की विवेकानंद जी ने सहर्ष सहमति देते हुए कहा कि आपका जन्म सामान्य जीवन जीने के लिए नहीं हुआ है पूर्व जन्म की तपस्या के कारण आपको विलक्षण कार्य करने हैं। यह सुनकर स्वामी रामतीर्थ ने सन्यास लेने का निर्णय किया और अपने पद से इस्तीफा देकर पत्नी के आग्रह पर हिमालय की अोर चल पड़े। गंगोत्री जाते समय टिहरी के निकट शाल्मली वृक्ष के नीचे मध्य रात्रि में इन्हें आत्म साक्षात्कार हुआ और वे तीर्थराम से “स्वामी रामतीर्थ “बन गए। इसके विषय में भी एक किवदंती प्रचलित है गुफा में कई दिन तक तपस्या के बाद भी उन्हें संतुष्ट प्राप्त नहीं हो रही थी। अतः निर्वाण की प्राप्ति के लिए गंगा में कूद गए लेकिन मां गंगा ने अपनी लहरों से बेहोशी की अवस्था में उन्हें चट्टान पर फेंक दिया और उन्हें बुद्धत्व की प्राप्ति हुई अपनी पत्नी और बच्चों को वापस भेज कर उन्होंने पूर्णत: सन्यासी जीवन को अपना लिया ।कहा जाता है कि उन्हें गंगा के दर्शन होते थे। घोर तपस्या के दौरान अनेक सिद्धियों की प्राप्ति हुई लेकिन उन्होंने उन्हें अस्वीकार कर दिया उनका मानना था कि सम्मान का बोझ लेकर स्वतंत्र जीवन नहीं जी पाएंगे।
सन उन्नीस सौ दो में टिहरी नरेश के आग्रह पर उन्हीं के खर्चे पर सर्व धर्म सम्मेलन में भाग लेने के लिए वे अमेरिका गए और अपने विचारों से लोगों को काफी अधिक प्रभावित किया। एक बार फिलोसॉफिकल सोसायटी में एक सभा के दौरान उनसे प्रश्न किया गया ईश्वर क्या है ?उन्होंने तुरंत उत्तर दिया,” ईश्वर और कोई नहीं मैं हूं।” मैं ही संपूर्ण सृष्टि को चलाता हूं। यहां तक कि प्रकृति के कण-कण में ईश्वर का वास है। उनके इस वेदांत को समझना सामान्य लोगों के बस की बात नहीं है। इसे केवल वही व्यक्ति समझ सकता है जो इसकी गहराई को नाप पाता है। एक बार की बात है एक अमेरिकन महिला , जो एक प्रख्यात कलाकार थी स्वामी जी के पास आई और उनसे एकांत में मिलने का आग्रह किया जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया। उस महिला ने काफी देर तक अपने दुखों का वर्णन किया। स्वामी जी चुपचाप उसे सुनते रहे तो लगभग क्रोधित होकर महिला ने कहा कि आप कैसे व्यक्ति हैं इतनी सुंदर स्त्री आपके सामने हैं फिर भी आप कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं कर रहे हैं। शांत भाव से उन्होंने उत्तर दिया कि आप मेरे साथ केवल तीन बार “ओम” का उच्चारण कीजिए ।महिला ने उनके कथन का अनुसरण किया और आश्चर्यजनक तरीके से उसे असीम शांति का अनुभव हुआ। इस चमत्कारिक परिवर्तन से प्रभावित होकर उसने स्वामी जी के समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखा और कहा कि मेरे पास अथाह संपत्ति है हम दोनों खुश रहेंगे। स्वामी जी ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया कि अभी कुछ समय पहले आप जिन दुखों का वर्णन कर रही थी आप यह चाहती हैं कि मैं भी उन्हीं दुखों को झेलूं। वैसे भी मैंने अपने कुटुंब का त्याग करके समस्त विश्व को ही अपना परिवार मान लिया है। यदि कुटुंब का मोह होता तो मैं उसे क्यों त्यागता?
उन्होंने जापान और अमेरिका में बहुत से सत्संग किए उन्हें बहुत से उपहार और सम्मान प्राप्त हुए। किंतु बाद में उन्हें गंगा की याद सताने लगी और सन 1904 में वे भारत लौट आए । जब वे वापस आ रहे थे तो खुद को मिली भेंट को” इंडो अमेरिकन सोसायटी” को दान कर दिया और प्राप्त सम्मान को गंगा में प्रवाहित कर दिया। गंगा के किनारे निवास करते हुए सन 1906 में दीपावली के दिन है मोक्ष की प्राप्ति हुई इस प्रकार टिहरी उनकी आध्यात्मिक प्रेरणा स्थली और मोक्ष स्थली दोनों बनी।
स्वामी रामतीर्थ सच्चे ज्ञानी थे। शास्त्र के ज्ञाता तो केवल शास्त्र रटते हैं उन्हें ज्ञान का अहंकार होता है। सच्चा ज्ञानी विनम्र स्वभाव का होता है और विनम्रता स्वामी जी में कूट-कूट कर भरी थी वे शंकराचार्य के अद्वैतवाद के समर्थक थे उनका मानना था कि पाश्चात्य दर्शन केवल जागृत अवस्था पर आधारित है उससे सत्य के दर्शन नहीं होते समस्त विश्व केवल आत्मा का खेल है ब्रह्म और आत्मा के मिलन में माया सबसे अधिक बाधक है। परिवार, जाति, समाज, धर्म सब माया के ही रूप हैं और विनाश की जड़ है। जब तक माया का लोप नहीं होगा तब तक ब्रह्म और आत्मा का मिलन असंभव है।
उनकी विचारधारा और उनके द्वारा प्रस्तुत वक्तव्य आज भी प्रासंगिक हैं ।वर्तमान में व्याप्त भ्रष्टाचार ,जातिगत और धार्मिक वैमनस्य, हिंसा आदि माया के कारण ही उत्पन्न बुराइयां है  जो निरंतर मानवता को अपना ग्रास बना रही हैं। यदि “वासुदेव कुटुंबकम” और “सर्वजन हिताय ,सर्वजन सुखाय “की विचारधारा को प्रभावी तरीके से प्रचलन में लाना है और वास्तविक सुख की प्राप्ति करनी है तो हमें उनसे प्राप्त दर्शन को अपनाने की आवश्यकता है। ब्रह्म और आत्मा के एकीकरण से ही वास्तविक आनंद को प्राप्त किया जा सकता है अन्यथा हम साधन अर्थात व्यक्ति और पदार्थ के बीच में ही उलझ कर रह जाएंगे।
—  कल्पना सिंह

*कल्पना सिंह

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