लघुकथा

अनुराग

आज एक आलेख पढ़ने को मिला-
‘जॉन कीट्स की कविता की तरह उनकी प्रेम कहानी भी अमर हो गई.’
इस आलेख को पढ़कर मुझे क्रिस्टीना की अनुराग और भाषा-प्रेम कथा याद आ गई, जो ऑस्ट्रेलिया आते समय मुझे दिल्ली एयरपोर्ट पर मिली थी. उसे भी सपरिवार ऑस्ट्रेलिया आना था.
अनुराग और क्रिस्टीना ऑस्ट्रेलिया में कॉलेज में साथ-साथ पढ़े थे. अनुराग का जन्म भारत में हुआ था और क्रिस्टीना जन्मजात ऑस्ट्रेलियन थी. उससे क्या होता है! प्रेम कोई सीमा न जानता है, न मानता है. अनुराग ने ही उसे गाकर सुनाया था-
”ना उम्र की सीमा हो ना जन्म का हो बंधन
जब प्यार करे कोई तो देखे केवल मन
नयी रीत चलाकर तुम ये रीत अमर कर दो.”
क्रिस्टीना ने गीत-संगीत के सुरीलेपन का आनंद तो लिया, लेकिन उसके अर्थ को भला कैसे समझती! उसे कौन सी हिंदी आती थी! अनुराग के लिए यह काम आसान था. उसने इंग्लिश में क्रिस्टीना को अर्थ समझा दिया. अनुराग ने फिर उसे गाकर सुनाया-
”ना भाषा की सीमा हो ना जन्म का हो बंधन
जब प्यार करे कोई तो देखे केवल मन
नयी रीत चलाकर तुम ये रीत अमर कर दो.”
”What is this Bahsa?” क्रिस्टीना ने जानना चाहा. बाकी सब तो उसे समझ आ गया था.
”Bahsa means language.” तनिक रुककर अनुराग ने उसे समझाया था- ”I learned English, you learn Hindi, I will teach you.”
”Really!” क्रिस्टीना Excited थी अनुराग के अनुराग के प्रति भी और हिंदी सीखने के प्रति भी.
”फिर क्या हुआ क्रिस्टीना!” मैंने भी Excited होकर पूछा था.
”भाषा की सीमा समाप्त होते ही मैं भारत जाकर अनुराग के परिवार से घुल-मिल गई. वहीं भारतीय रीति-रिवाज से हमारी शादी हो गई. जल्दी ही मेरे ससुर साहब का कहना था- ‘मैं अनुराग से भी अच्छी हिंदी बोल लेती हूं.’ हमारे बच्चे भी बहुत अच्छी हिंदी बोल लेते हैं. अपने दादा जी के साथ वे हिंदी में इस प्यारे अंदाज में बात करते हैं, कि देखने-सुनने वालों को हैरानी होती है. मैं हिंदी न जानने वाले भारतीय बच्चों के लिए क्रैच चलाती हूं. उनकी संभाल के साथ हिंदी सिखाना भी मेरा शौक है. कुछ अंग्रेज बच्चे भी मेरे पास हिंदी सीखने आते हैं. मुझे भारतीय व्यंजन बनाना भी आ गया है और मैं बड़े शौक से बनाती-खाती-खिलाती हूं.”
”यह सब कैसे संभव हुआ?”
”अनुराग के अनुराग से. क्रिस्टीना ने सुरीली आवाज में गाकर सुनाया-
”ना भाषा की सीमा हो ना जन्म का हो बंधन
जब प्यार करे कोई तो देखे केवल मन
नयी रीत चलाकर तुम ये रीत अमर कर दो.”
तभी बोर्डिंग शुरु होने की उद्घोषणा सुनकर हम हम सब लाइन में लग गए. ऑस्ट्रेलिया में रहते हुए क्रिस्टीना मुझे भले ही न मिले, लेकिन उसके गोरे-चौड़े ललाट की बड़ी-सी लाल बिंदी और कंठ में मंगलसूत्र आज भी मेरी आंखों के समक्ष प्रतिमावंत हैं. लगता है क्रिस्टीना के अनुराग और हिंदी भाषा-प्रेम की कथा भी कीट्स की प्रेम कहानी की तरह अमर रहेगी, साथ ही अमर रहेगा क्रिस्टीना का अनुराग, भारतीय संस्कृति और हिंदी भाषा के प्रति अनुराग.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “अनुराग

  • लीला तिवानी

    क्रिस्टीना मुझे ऑस्ट्रेलिया आते समय दिल्ली एयरपोर्ट पर मिली थी. गोरे रंग की गठीली कद-काठी वाली क्रिस्टीना जन्मजात ऑस्ट्रेलियन लग रही थी और उसके बच्चे भी उसके जैसे. वे बच्चे एक भारतीय बुजुर्ग सज्जन से सटकर बैठे हिंदी में इस तरह घुल-मिलकर बातें कर रहे थे, मानो उनके दादू-नानू हों. बच्चों की तरफ से निश्चिंत क्रिस्टीना पहले तो घूम-फिर रही थी, फिर आके हमारे पास बैठ गई, उससे ही उसकी प्रेम-गाथा सुनने को मिली. तभी पता चला कि वे भारतीय बुजुर्ग सज्जन उन बच्चों के दादू ही थे.

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