कविता

मैंने मुस्कुराना सीख लिया है

मैंने मुस्कुराना सीख लिया है
मैंने महसूस किया है
मुस्कुराने से दिल का दर्द ठीक हो जाता है,
ग़म कोसों दूर भाग जाते हैं,
आंसुओं को कहीं छुपने के लिए कोई कोना ढूंढना पड़ता है,
मीठी यादों के बादल घहरा जाते हैं,
मायूसी मेरे पास फटकने नहीं पाती,
रंज का अस्तित्व विलुप्त हो जाता है,
रोष किसी कोने में दुबक जाता है,
रिश्तों की मिठास मन को मधुर कर जाती है,
ज़िंदगी और क़िस्मत के हर इम्तिहान का परिणाम सुखद होता है,
आनंद भी आनंदित हो जाता है,
परमात्मा का वरद हस्त मस्तक पर छांव बनकर छा जाता है,
कोई बार-बार याद दिला जाता है,
‘मैंने मुस्कुराना सीख लिया है’,
फोटो खिंचवाने के लिए कैमरे के सामने तो हर कोई मुस्कुराता है,
न जाने परमात्मा कब मेरी फोटो खींच ले,
इसलिए
मैंने मुस्कुराना सीख लिया है,
मैंने मुस्कुराना सीख लिया है,
मैंने मुस्कुराना सीख लिया है.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “मैंने मुस्कुराना सीख लिया है

  • लीला तिवानी

    मुस्कुराओ कि मुस्कुराने पर कोई मोल नहीं लगता,
    गुनगुनाओ कि गुनगुनाने का कोई टोल नहीं लगता
    हंसने-हंसाने को ही जीवन का लक्ष्य बनालो
    सच्चे-मीठे बोलों जैसा प्यारा कोई बोल नहीं लगता.

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