कुंडलिया
ममता के पांडाल में, माता जी की मूर्ति।
नव दिन के नवरात में,सकल कामना पूर्ति।
सकल कामना पूर्ति, करें आकर जगदंबा।
भक्तों के परिवार में, एक मातु अवलंबा।
कह गौतम कविराय, न देखी ऐसी समता।
होते पूत कपूत, मगर आँचल में ममता।।
— महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी