लघुकथा

फुलझड़ी

हलो बुआ! प्रणाम! हैप्पी दिवाली!

जी बुआ, पापा मेरे हिस्से की दिवाली मनाने के लिए फुलझड़ी लाए। स्कूल में सुने पर्यावरण की हानि वाला उपदेश उन्हें बतलाया, तो कहने लगे कि नीति बेटी, फुलझड़ी से ध्वनि एवं वायु प्रदूषण नहीं होता। शोर एवं हवा में प्रदूषण तो बम इत्यादि खतरनाक पटाखों से होता है। फुलझड़ी चलाइये बेटी। तुम्हारे मासूम होठो से मुस्कुराहट के फूल झडते रहे, यही फुलझड़ी का सन्देश है। तुम्हारी मम्मी को ईश्वर ने बुला लिया है पर अब तुम्हारे लिए पापा से पहले मम्मी का रोल करने का प्रयास कर रहा हूँ। उदास मत हो नीति। अभी हास्पिटल में एडमिट मरीजों की साइड टेबल पर मोमबत्ती से रोशनी कर एवं फल वितरित कर आता हूँ। फिर हम दोनों ही एकसाथ फुलझड़ी चला कर अपने अपने हिस्से की दिवाली मनाएंगे।

अच्छा बुआ रखती हूँ। पापा आ गए हैं। बाय बुआ !

—  दिलीप भाटिया

*दिलीप भाटिया

जन्म 26 दिसम्बर 1947 इंजीनियरिंग में डिप्लोमा और डिग्री, 38 वर्ष परमाणु ऊर्जा विभाग में सेवा, अवकाश प्राप्त वैज्ञानिक अधिकारी