कविता

उन्मुक्त पंछी

उन्मुक्त गगन का पंछी हूँ
दूर कही जा
उड़ जाऊंगा।
लेकर तेरी यादों को संग
अंबर की छोर में
जा अकेला
कही छुप जाऊंगा।
ढूंढेंगी तेरी अखियां
तलाश करेगी
तेरे दिल की हर धड़कनें।
पर मैं तेरी
यादों की नाव ले
समुंदर की गहरी ओट में
कही जा छुप जाऊँगा।
तुम ढूंढगे मुझे
टूटी हुई
अपनी हर अनुभूति में।
तुम तलाश करोगें मुझे
बिखरी हुई
अपनी हर अभिव्यक्ति में।
पर मैं तुम्हें मिलूंगा
उस अनंत ईश्वर की
अब छोर में।
क्योंकि तुमने
मुझे छोड़ दिया था
जीवन के हर मोड़ में।

— राजीव डोगरा

*डॉ. राजीव डोगरा

भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा कांगड़ा हिमाचल प्रदेश Email- Rajivdogra1@gmail.com M- 9876777233