लघुकथा

सरसराहट

”मेरी आहट सुन पा रहे हो क्या?” एक आवाज आई.

”तुम कौन हो?”

”मैं हूं कल की आहट.”

”कौन सा कल? बीता कल या आने वाला कल?” सोमेश ने पूछा.

”जो भी तुम समझो.”

”ऐसा है जी, बीता कल तो है सपना, आने वाला कल है कल्पना, बस वर्तमान ही है अपना. इसलिए मैं तो केवल वर्तमान की सरसराहट ही सुनता हूं.”

”तुम कुछ नहीं सुन रहे! बीते कल की आहट नहीं सुन पा रहे, अन्यथा ऑनर किलिंग, एसिड अटैक, अपहरण और बलात्कार जैसे जघन्य अपराध कब के समाप्त हो गए होते!” कल की आहट का आक्रोश थम नहीं पा रहा था.

”और सुनो, तुम तो आने वाले कल की आहट भी नहीं सुन पा रहे! यदि ऐसा होता तो तुम्हारी अर्थव्यवस्था की किश्ती यों न डगमगा रही होती और न ही तुम्हें जानलेवा भयावह प्रदूषण का सामना करना पड़ता!” कल की आहट थमने की नाम नहीं ले रही थी.

”तुम तो वर्तमान की सरसराहट भी नहीं सुन पा रहे हो, अन्यथा सारा दिन मोबाइल पर उंगलियां चलाते-चलाते तुम्हारी उंगलियां सुन्न नहीं हो पातीं! तुम सरसराहट सुन पा रहे हो तो केवल मशीनी कलों की. अपने स्वास्थ्य की कीमत पर तुम सारा दिन इलैक्ट्रिक कैटल, माइक्रोवेव, ग्राइंडर-मिक्सर, ब्रेड टोस्टर, डिशवाशर, वाशिंग मशीन, रोटीमेकर आदि का इसलिए प्रयोग करते हो, ताकि तुम्हें नेट पर बैठने का अधिक-से-अधिक समय मिल सके!” सोमेश की उंगलियां ही नहीं दिमाग भी सुन्न हो रहा था.

”अभी भी समय है, वर्तमान की सरसराहट सुनते हुए, बीते कल की आहट से सीख लो, आने वाले कल की भी चिंता करो और कलों की सरसराहट को कम सुनो. कलों को अपना गुलाम बनाओ, तुम इनके गुलाम मत बनो. इसी में तुम्हारा भला है. अच्छा अब चलता हूं, मुझे औरों को भी जगाने जाना है.”

सोमेश के मन-मस्तिष्क को झिंझोड़कर कल की आहट जा चुकी थी.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

3 thoughts on “सरसराहट

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत सुन्दर और जागरूपता लेन वाली रचना .,,,,,,,,,,,,,,,,,,,” “अभी भी समय है, वर्तमान की सरसराहट सुनते हुए, बीते कल की आहट से सीख लो, आने वाले कल की भी चिंता करो और कलों की सरसराहट को कम सुनो. कलों को अपना गुलाम बनाओ, तुम इनके गुलाम मत बनो. इसी में तुम्हारा भला है “. बिलकुल सही कहा गिया है .

    • लीला तिवानी

      प्रिय गुरमैल भाई जी, रचना पसंद करने, सार्थक व प्रोत्साहक प्रतिक्रिया करके उत्साहवर्द्धन के लिए आपका हार्दिक अभिनंदन. आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है. कल की आहट को सबको सुनना चाहिए, तभी बदलाव आएंगे. ब्लॉग का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद.

  • लीला तिवानी

    वस्तुतः मनुष्य न बीते हुए कल को याद करके उससे शिक्षा लेता है न आने वाले समय की चिंता करके भविष्य की सुरक्षा को सुनिश्चित करने की योजना बनाता है. वह तो केवल मशीनों का दास बन अपने वर्तमान को भी नष्ट कर रहा है. मशीनों की सरसराहट में वह अपने लाभ की ओर से भी केखबर बना हुआ है. केवल सुविधा और दिखावे के साथ जीने वाले मनुष्य में मनुष्यता और संवेदनशीलता का अभाव हो गया है.

Comments are closed.