कविता

बेटी और तलवार 

हाथों में तलवार थाम लो बेटियो

अब तुमको खुद ही लड़ना होगा,
मित्र भी अपने शत्रु भी अपने इनसे
तुम्हे खुद अपने आप निपटना होगा।
आंखों में आंसू नही चिंगारी भर लो
अब तुमको ही जलाना और जलना होगा,
बनके काली तुमको ही अब दुष्टों का
सर कलम कर रक्तपान अब करना होगा।
नाजुक,कोमल,कमजोर ना बनना
अब तुमको खुद ही ज्वाला बनना होगा
दरिंदगी और कामुकता की बलि बेदी से
अब तुम्हें स्वयं बाहर निकलना होगा।
तुम्हारी तरफ जो हाथ बढ़े उन हाथों को
धड़ विहीन तुम्हें ही करना होगा
इस कपटी कलुषित समाज के भीतर
खुद को तुम्हें अंगारो में मढ़ना होगा।
आंचल में समेट कर लाज को अपनी
तुम अबला असहाय ना बन जाना
तुम्हें अपना चीर जलाकर दुष्टों की बनाई
इस अत्याचारी लंका का दहन अब करना होगा।।
— आरती त्रिपाठी

आरती त्रिपाठी

जिला सीधी मध्यप्रदेश