कविता

हम कह ना पाए

लग रहा है जैसे तू मुझसे दूर जा रही है,
तेरी यादें मुझमें एक डर सा जगा रही है।
बीते लम्हों की बेचैनी मुझे रुला सी रही है,
दिल की हर धड़कन तुझे बुला सी रही है।
तेरे प्यार से यह दिल मेरा यूँ वंचित सा है,
फिर क्यों तेरे लिए ही दिल चिंतित सा है।
मैं समझा समझ लोगे मगर समझ ना पाए,
दोष तुम्हारा क्या दूं जब हम कह ना पाए।
मुझे छोड़ कर तुम ना हो पाए जमाने के,
पहले ढूंढ़ तो लेते बहाने कुछ ठिकाने के।
— आशीष तिवारी निर्मल

*आशीष तिवारी निर्मल

व्यंग्यकार लालगाँव,रीवा,म.प्र. 9399394911 8602929616