मुक्तक/दोहा

दोहे रमेश के दिवाली पर

संग शारदा मातु के, लक्ष्मी और गणेश !
दीवाली को पूजते, इनको सभी ‘रमेश !!
आतिशबाजी का नहीं, करो दिखावा यार !
दीपों का त्यौहार है, सबको दें उपहार !
आतिशबाजी से अगर, गिरे स्वास्थ्य पर गाज !
ऐसे रस्म रिवाज को, करें नजर अंदाज !!
करें प्रदूषण वाकई, ऐसे रस्म रिवाज !
उनका करना चाहिए, झटपट हमें इलाज !!
पैसा भी पूरा लगे, गंदा हो परिवेश !
आतिशबाजी से हुआ, किसका भला “रमेश”!!
मंदी ने अब के किया, ऐसा बंटाधार !
फीकी फीकी सी लगे, दिवाली इस बार !!
सर पर है दीपावली, सजे हुवे बाज़ार !
मांगे बच्चो की कई, मगर जेब लाचार !!
बच्चों की फरमाइशें, लगे टूटने ख्वाब !
फुलझडियों के दाम भी, वाजिब नहीं जनाब !!
दिल जल रहा गरीब का, काँप रहे हैं हाथ !
कैसे दीपक अब जले, बिना तेल के साथ !!
बढ़ती नहीं पगार है, बढ़ जाते है भाव !
दिल के दिल में रह गये, बच्चों के सब चाव !!
कैसे अब घर में जलें, दीवाली के दीप !
काहे की दीपावली, तुम जो नहीं समीप !!
दुनिया में सब से बड़ा, मै ही लगूँ गरीब !
दीवाली पे इस दफा, तुम जो नहीं करीब !!
दीवाली में कौन अब, बाँटेगा उपहार !
तुम जब नहीं समीप तो, काहे का त्यौहार !!
आपा बुरी बलाय है, करो न इसका गर्व !
सभी मनाओ साथ में, दीवाली का पर्व !!
लिया हवाओं से सहज, मैंने हाथ मिलाय !
सबसे बड़ी मुंडेर पर, दीपक दिया जलाय !!
हुआ दिवाली पर सदा, माँ को बडा मलाल !
सरहद से जब घर नहीं, लौटा उसका लाल !!
— रमेश शर्मा

रमेश शर्मा

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