लघुकथा

सस्ती मिठाइयाँ

मोहनलाल की बाजार में मिठाई व नाश्ते की एक दुकान थी । दिवाली में पिछले साल की मंदी को ध्यान में रखकर मोहनलाल ने इस साल सस्ती मिठाइयों का जुगाड़ कर लिया था और उनकी उम्मीद के मुताबिक ही इस साल उनकी मिठाइयों की बिक्री शानदार हुई । लक्ष्मी पूजन की रात्रि में ही उनके पास उपलब्ध लगभग सभी मिठाइयाँ बिक गईं । देर रात गल्ले में से पैसे निकाल कर सहेजते हुए मोहनलाल जी बहुत खुश नजर आ रहे । उनकी खुशी को महसूस करते हुए नौकर रामदीन बोला ,” सेठ जी ! सस्ती मिठाइयाँ रखने का आपका फैसला बहुत सही साबित हुआ । दिनोंदिन बढ़ती महँगाई और घटती आमदनी के मार से त्रस्त लोग भला महँगी मिठाइयाँ खरीदते भी कैसे ? सस्ती मिठाई से देखिये कितने लोगों का भला हो गया । “
सामने लगी टी वी स्क्रीन पर ब्रेकिंग न्यूज़ चल रही थी और एंकर चीख चीख कर बता रहा था
” जहरीली मिठाइयों के शिकार लगभग दो सौ से अधिक लोग शहर के विभिन्न अस्पतालों में भर्ती जिनमें से सोलह की हालत गंभीर बनी हुई है । “
राजकुमार कान्दू

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।