लघुकथा

मंजिल

नाम के अनुरूप नवेंदु को सदैव नवीनता की ललक रहती थी. कुछ नया करने के लिए उसने क्या नहीं किया था! उसके अंतर्मन में द्वंद्व भी हलचल मचाता था-
”कोलम्बस ने अमेरिका की खोज कर ली, मैंने क्या किया?” यह सवाल उसने तब खुद से पूछा था, जब वह नवीं कक्षा में था.

”सरदार पटेल ने एकता के लिए क्या नहीं किया?”

”देश की एकता के सूत्रधार थे पटेल, देशी रियासतों का विलय किया.” मैं तो अपने लिए ही कुछ नहीं कर सका.” यह भी उन्हीं दिनों की बात थी.

”मुंबई मायानगरी है, वहां जाकर सब हीरो बन जाते हैं और वहां कोई भी भूखा नहीं मरता, कहने वाले एक मित्र के उकसाने तुम हीरो बनने मुंबई भाग गए थे. याद है न! और फिर घबराकर वापिस आ गए थे.” मन के एक कोने ने कहा.

”ऑस्ट्रेलिया में पढ़ाई करने जाओ, साथ में थोड़ा-सा काम करो और पूरा हफ्ता मौज करो, एक और मित्र के कहने पर तुम जिद्द करके एम.बी.ए. करने के लिए ऑस्ट्रेलिया आ गए हो, लेकिन क्या अभी तक किसी काम में टिक पाए हो?” मन के एक और कोने ने सवाल किया. कुम्हलाया-सा चेहरा लिए वह ब्लैकटाउन स्टेशन पर खड़ा था.

तभी उसने एक लड़की को देखा. क्या ग़ज़ब थी वह लड़की! पीठ पर बैग पैक, जो प्रायः हर विद्यार्थी के पास होता है, एक कंधे पर छोटा-सा गिटार लटकाए, दूसरे कंधे पर किताबों का एक बड़ा-सा थैला (शायद किसी लाइब्रेरी से किताबें इशू करवाकर लाई होगी, या वापिस करने जा रही होगी), आगे योग-मैट भी लटकाए मोबाइल चैक करती हुई तेजी से जा रही थी. लड़की होकर इतनी प्रतिभा!

अकस्मात उसे योगेश सर की बात याद आ गई.

”नवेंदु, तुम बहुत प्रतिभाशाली हो. चाहो तो बहुत कुछ कर सकते हो. तुम गीत-कविता भी लिख सकते हो, संगीत के भी अच्छे ज्ञाता हो, योग क्षेत्र में तुम्हारा कोई सानी नहीं, बस एक बार कोई नया रास्ता ढूंढने की सोच लो तो सबको पछाड़ सकते हो!”

रोज शाम को गीत-संगीत के साथ योग-कक्षा चलाने के रूप में उसे मंजिल मिल गई थी.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “मंजिल

  • लीला तिवानी

    ऑस्ट्रेलिया में प्रायः ऐसी बहुआयामी कक्षाओं का बहुत स्वागत होता है. 1-2 घंटे के ऐसी कक्षाओं में छोटे-बड़े सभी रुचिपूर्वक आते हैं. आत्मनिर्भर रहने के लिए हर विद्यार्थी को सप्ताह में 2-3 घंटे ही काम करने पर उसकी दैनंदिन आवश्यकताएं पूरी हो सकती हैं. नवेंदु ने भी अपने लिए ऐसी ही मंजिल तलाश ली थी.

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