गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

आईने को कभी अपनी अदा बताते रहिए
सीरत और सूरत भी खुद आजमाते रहिए

है तुम्हारा दुनिया से बस इतना राबता
वो जलती है जितनी उसे जलाते रहिए

मुखौटे बहुत सजे हैं चेहरे पर इंसान के
खुश रहें वो बस उसे वही बताते रहिए

कुछ सदा निकलेंगी और कुछ शिकायतें
दिल की आवाज मे आवाज मिलाते रहिए

खर्च करने का ही हो मकसद सबका तो
बेहिसाब अमन सबके दिलों में लुटाते रहिए

पहचान बदी की राह की ईश देगा मणि
खुद भी बचते रहें औरों को बचाते रहिए

— मनीष मिश्रा मणि