लघुकथा

विजय

गगन और सूरज की प्राकृतिक सुंदरता वाला क्लिक भेजकर गगन ने 50,000 डॉलर वाला क्लिक कॉप्टीशन विन किया था, उस राशि से उसका बिजनेस फिर से गगन की ऊंचाइयों को छूने लगा था. ऑस्ट्रेलिया की भयंकर गर्मी में ए.सी. के साथ चलते पंखे के घूमते परों के साथ उसके विचार भी अतीत में घूम रहे थे.

”गगन, तुम ट्रैकिंग पर जा रहे हो, मैं भी तुम्हारे साथ चलूंगी.” उसकी फेसबुक फ्रैंड जेनी ने कहा था.

”तुम कैसे चलोगी, वहां बहुत ऊंची चढ़ाई है!” न जाने क्यों गगन उसे हतोत्साहित कर रहा था!

”चीन में तो हम इससे भी ऊंची-ऊंची चढ़ाइयों पर गए हैं और तुम तो जानते ही हो कि पिछले महीने मैं जापान में भी ट्रैकिंग ग्रुप के साथ गई थी.”

”ग्रुप के साथ गई थीं ना, मैं तो अकेला ही जा रहा हूं.”

”लो बोलो, अकेला भी कोई ट्रैकिंग पर जाता है! बस मैं तुम्हारे साथ चल रही हूं.” गगन की तरह ऊचाइयों को छूते हुए उसके व्यापार में अचानक गिरावट की हताशा को ध्यान में रखते हुए जेनी ने कहा था.

”अच्छा, लेकिन मैं कुछ सामान नहीं ले जा रहा हूं.” गगन का मैसेज आया था.

”कोई चिंता नहीं, मेरे पास सौरभ की किट भी पड़ी हुई है, मैं ले आऊंगी. खाने-पीने का सामान भी मैं ही लाऊंगी, तुम बस अपना फिटनेस रूटीन मेंटेन किए रखना.”

”अब क्या करूंगा फिटनेस रूटीन का!”जेनी का मैसेज पढ़कर गगन परेशान हो गया था.

सचमुच वह ट्रैकिंग के लिए खाली हाथ आया था. जेनी के जोर देने पर उसने बेमन से सौरभ वाला किट उठा लिया था.

ट्रैकिंग शुरु होने पर भी वह अनमना-सा चल रहा था. यह तो शुक्र है कि वह अपना मोबाइल और चार्जर उठा लाया था और आगे-पीछे होने पर जेनी उससे संवाद कर पा रही थी.

अचानक जेनी ने देखा, गगन तो गगन की ऊंचाई को छू रहा था. उसने झट से फोटो खींचकर गगन को वाट्सऐप कर दिया- ”हे गगन, तुम तो इतनी ऊंचाई पर पहुंच गए हो, तुम तो कुछ भी कर सकते हो! तुम्हारे हौसले को सलाम.” कुछ सोचकर उसने लिखा था.

”हे जेनी देखो, कितना सुंदर नजारा है!” गगन ने गगन की लालिमा के प्राकृतिक सौंदर्य को के कैद कर जेनी को भेज दिया था.

”वाउ! यह क्लिक तो क्लिक कॉप्टीशन विन कर सकता है!” जेनी ने लिखा था, ”50,000 डॉलर! तुम्हारा बिजनेस तो चमक जाएगा!”

गगन ने गगन को और मन-ही-मन जेनी को भी नमन किया और संभल-संभलकर नीचे उतर आया था.

मुश्किल समय में साथ देने के लिए उसने बार-बार जेनी का धन्यवाद किया था. एक बार फिर जेनी का हार्दिक धन्यवाद करके वह हताशा पर विजय पाने के लिए तत्पर हो उठा था.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “विजय

  • लीला तिवानी

    जेनी जैसा प्रेरक और दृढ़ निश्चयी साथ मिले तो कोई भी हताशा से उभर सकता है, फिर विजय का परचम लहराना कतई मुश्किल नहीं है.

Comments are closed.