कविता

आखिरी बार

चलो एक वादा रहा
अब से जो मेरी कलम लिखेगी
सब लिखेगी
बस तुमको नहीं लिखेगी
ना भाव होंगे
ना शब्द तुम्हें छुएंगे
ना ख्वाब होंगे
ना इंतज़ार होगा
पर बस
आखिरी बार
मेरे साथ रहो
थोड़ी खुशियां चुन लूं
आखिरी बार
तुम्हें देख
कुछ सपने बुन लूं
मुठ्ठी भर हंसी
दे जाओ अपनी..
कभी अकेले में
हंस लूंगी मैं भी,
उंगलियों पर मेरी
अपने हाथों की
पकड़ छोड़ जाओ
की वो सहारा देंगी
जब कभी ठोकर खाकर गिरूंगी
आखिरी बार
कुछ और स्याह पल दे जाओ
उन्हें स्याही बना कर
तुम्हे लिखना चाहती हूं
बस आखिरी बार
थोड़ा सा
और जीना चाहती हूं।।
— ऋचा