गीत/नवगीत

माया मोह के चक्कर में

आडंबर और दिखावों का फैला है जाल

माया मोह के चक्कर में है ये दुनिया बेहाल

 

सत्य ईमान की निष्ठा की मुश्किल हो गई राह यहां

थे जो देते रस्ता औरों को वे खुद हो गए गुमराह यहां

ठोस हुए हैं कदम स्वार्थ के मतलब का है हर रिश्ता

अपनी में सब खोए हैं नहीं औरों की परवाह यहां

 

रिश्तों की अब डगर कठिन है नाते हैं तंगहाल

माया मोह के चक्कर में है ये दुनिया बेहाल

 

भरा हुआ है छल हर मन में कपट भरा है सीने में

नहीं भरोसा किसी को मेहनत वाले खून पसीने में

खुलकर जीने की मंशा भी लुप्त हो गई है देखो

लगे हुए हैं सारे ही मर – मर के यहां पर जीने में

 

बेईमानी धनी बनी है और ईमान कंगाल

माया मोह के चक्कर में है ये दुनिया बेहाल

 

किया पलायन चैन-सुखों ने वास हुआ तकलीफों का

बदमाशों का राज हुआ दूभर जीना शरीफों का

छिन से गए हैं पल सूकून के मानो किस्मत के हाथों

इम्तिहान लेती लाचारी दिन और रात गरीबों का

 

च्छ हवा में सांसे लेना भी हो गया मुहाल

माया मोह के चक्कर में है ये दुनिया बेहाल

 

विक्रम कुमार

मनोरा, वैशाली

विक्रम कुमार

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