कविता

कहाँ हो तुम

कहाँ हो तुम मिलते नहीं वहाँ

जहाँ आजकल रहते हो तुम
दिल के मकान से जी भर गया
या किसी नये मकान मे आजकल
बसने लगे हो तुम कहाँ हो तुम
थक गये हो क्या तुम दिल की  तंग
गलियों में सफर करते करते
या साथ किसी और के आजकल
चल पड़े हो तुम कहाँ हो तुम
बेरंग नींदो से अपने सपने चुराकर
आई हूँ खोजने तुम्हें खुद को गंवाकर
मिलोगे कभी कहीं किसी मोड़पर
किसी के दिल में या फिर रोड़पर
उम्मीदों को थामे चले जा रही हूँ
ना रो रही हूँ ना हँस पा रही हूँ
बताओ कब कहाँ कैसे मिलोगे तुम
दिखते नहीं जमाने में कहाँ हो तुम
एक उम्र गुजर गई तेरी चाहतों में
देर होती है क्यूँ दिल की राहतों में
दुनिया की हर गली छानकर आई हूँ
मिलकर जाऊँगी ठानकर आई हूँ
कभी तो कहीं से पता मिलेगा तुम्हारा
रहते जहाँ आजकल हो तुम कहाँ हो तुम
— आरती त्रिपाठी

आरती त्रिपाठी

जिला सीधी मध्यप्रदेश