कविता

तुम बदल गयी हो

तुम बदल गयी हो
यही कहते हैं न लोग
तो सुनो
हाँ मै बदल गयी हूँ
जो सूर्य अस्त होते ही
अकेले घर से आँगन में निकलने से डरती थी
आज आधी रात को पूरे शहर तक छान मारती हूँ
हाँ मै बदल गयी हूँ
जो रात में बिन माँ के सोती नहीं थी
आज पूरे घर मे अकेले सो लेती हूँ
हाँ मै बदल गयी हूँ
पहले थोड़ी सी डांट पर मुँह फूला लेती थी
आज हर दिन डांट सुन कर भी मुस्कुरा लेती हूँ
हाँ मै बदल गयी हूँ
त्योहारों के समय नए कपड़े के लिए रोती थी
आज नए कपड़े होते हुए भी नहीं पहन पाती हूँ
हाँ मै बदल गयी हूँ
थोड़ी सी चोट लगने पर रोने लगती थी
आज बड़ा चोट लगने पर भी संभल जाती हूँ
हाँ मै बदल गयी हूँ
मुझे खाने मे ये नहीं वो चाहिए कह कर नखरे दिखाती थी
आज रात मे अक्सर भूखे सो जाती हूँ
हाँ मै बदल गयी हूँ
पहले लाख समझाने पर भी नहीं समझती थी
आज खुद को समझाना सीख गयी हूँ
हाँ मै बदल गयी हूँ।
निवेदिता चतुर्वेदी ‘निव्या’

निवेदिता चतुर्वेदी

बी.एसी. शौक ---- लेखन पता --चेनारी ,सासाराम ,रोहतास ,बिहार , ८२११०४